कमाई
जीवन के स्क्वाश कोर्ट में खड़ी हूँ
सोच में डूबी
सारे जीवन गेंद को पूरी ताकत से
दीवार पर मारती रही ।
तब ताक़त थी न बहुत
कभी सोचा ही नहीं
बीच में आने वाला हर व्यक्ति
इन तीव्र गेंदों के वेग से
घायल हो रहा है ।
विषैले व्यंग, कटाक्ष, घृणा और धिक्कार
अपमान, अवमानना, तिरस्कार और उपहास के ज़बरदस्त
बाउंसर पे बाउंसर मैं फेंकती रही
और घायल करती रही
बिन देखे ही कि
जो घायल हो रहे हैं
वो मेरे अपने ही हैं ।
आज रिबाउंड होकर वही गेंदें
दुगुने वेग से मेरे पास लौट रही हैं
मुझे चोटें पहुंचाती
मुझे घायल करतीं और
बिलकुल निसंग और एकाकी करतीं ।
क्या कहूँ !
जो चोटें आज मुझे मिल रही हैं
उनसे भी गहरी चोटें
शायद वो चोटें हैं
जो अतीत में मैंने
उन्हें दी थीं ।
उस वक्त जब रिश्तों का पन्ना
बिलकुल कोरा था
एक बहुत ही खूबसूरत
इबारत लिखने के लिए
मैंने अहंकार और अभिमानवश
जो कुछ उस पर लिख दिया था
उसका यही सिला मुझे मिलना
लाज़िमी था ।
अब गिला कैसा !
यही है मेरे जीवन भर की कमाई ।
साधना वैद
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