Followers

Thursday, June 22, 2017

जीवन की जंग



जीतनी तो थी जीवन की जंग 
तैयारियाँ भी बहुत की थीं इसके लिए 
कितनी तलवारें भांजीं 
कितने हथियारों पर सान चढ़ाई
कितने तीर पैने किये
कितने चाकुओं पर धार लगाई
लेकिन एक दिन सब निष्फल हो गया 
जीवन के इस मुकाम पर आकर 
इतनी ताकत ही कहाँ रही हाथों में
कि कोई भी अस्त्र उठा सकूँ ।
कभी सुना था कि जीवन की जंग 
अस्त्र शस्त्रों से नहीं
खूबसूरत सुरभित फूलों से 
जीती जाती है ।
युद्ध की गगनभेदी रणभेरी से नहीं
सुमधुर स्वर्गिक दिव्य संगीत से
जीती जाती है ।
नहीं जानती इस जंग का 
क्या हश्र होगा लेकिन 
यह तय है कि अब ये हाथ
इतने अशक्त हो उठे हैं कि
इनसे एक फूल भी पकड़ना 
नामुमकिन हो गया है ।
और कानों में दिव्य स्वर्गिक 
जीवन संगीत के स्थान पर 
सिर्फ और सिर्फ तलवारों की 
खनखनाहट ही गूँजती रहती है ।
कोई तो बताये मैं क्या करूँ ।



साधना वैद

No comments :

Post a Comment