नन्हा सा दीप
मिटाए जगत का
अंधेरा घना
छाँटनी होगी
ज्ञानालोक के लिए
मन की धुंध
गहरा हुआ
मन का अवसाद
घुप्प अंधेरा
जगमगा दो
मन का कोना-कोना
दीप ले आओ
माटी का तन
कोमल सी वर्तिका
थोड़ा सा तेल
देखो तो ज़रा
जलते ही भगाया
दूर अंधेरा
फैला उजाला
निश्चित हुए लक्ष्य
भागे संशय
उमंगा मन
पथ हुआ प्रशस्त
मंजिल पास
मन में हुआ
साहस का संचार
बढ़ा विश्वास
नन्हे से दीप
स्वीकार करो तुम
मेरा प्रणाम
साधना वैद
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