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Sunday, January 7, 2018

नमन तुम्हें मैया गंगे



गिरिराज तुम्हारे आनन को 
छूती हैं रवि रश्मियाँ प्रथम 
सहला कर धीरे से तुमको 
करती हैं तुम्हारा अभिनन्दन 
उनकी इस स्नेहिल उष्मा से 
बहती है नित जो जलधारा 
वह धरती पर नीचे आकर 
करती है जन जन को पावन !



साधना वैद

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