ख़तम हुआ 
हार जीत का
खेल 
जनता क्षुब्ध
काबिज़ हुए 
जनता के नकारे 
सत्ता पे नेता
जिसे जिताया 
नेताओं की
चालों ने 
उसे हराया
कैसे मनाये 
छली गयी जनता 
जीत का जश्न
बनाया गया 
बेवकूफ फिर से 
आम आदमी 
उड़ा मखौल 
लोकतंत्री
मूल्यों का 
हारी जनता 
कुर्सी पे कौन 
कैसा था
जनादेश 
कैसा है न्याय 
गढ़ें नियम 
रोकेंं दल बदल 
निभायें
निष्ठा  
बंद हो चक्र 
ये मौकापरस्ती
का  
बचे जनता 
ना खेल पाये
संविद सरकार 
सियासी खेल 
साधना वैद 

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