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Friday, May 18, 2018

भूमिजा हूँ मैं



आओ ना ! 
ठिठक क्यों गए ? 
चलाओ कुल्हाड़ी ! 
करो प्रहार !
सनातन काल से ही तो 
झेलती आई हूँ मैं 
अपने तन मन पर 
तुम्हारे सैकड़ों वार ! 
भय नहीं है मुझे तुम्हारा 
तुम्हारे इस आतंक के साये में ही तो 
गुज़ारा है मैंने अपना जीवन सारा ! 
तुम क्या बिगाड़ लोगे मेरा !
अदम्य हूँ मैं !
मिटाना चाहते हो मुझे ? 
मिटाओ, अपराजेय हूँ मैं  !
जानते भी हो मुझे ? 
भूमिजा हूँ मैं 
तुम एक भुजा काटोगे मेरी 
मैं सहस्त्र भुजाओं से लुटाऊँगी
मोक्षदा हूँ मैं ! 
तुम मेरी जड़ों पर एक जगह 
कुल्हाड़ी चलाओगे 
हवाओं के साथ मेरे बीज 
दिग्दिगंत तक उड़ जायेंगे 
तुम काट कर मुझे धरा पर लिटा दोगे
हज़ारों वृक्ष हज़ारों एकड़ में 
मेरे समरूप उग जायेंगे ! 
ये अबोध बालक प्यार करते हैं मुझे 
मेरी शीतल छाया में 
बीतता है दिन इनका !
मेरे मधुर रसीले फल और 
मेरी शाखों पर पड़े झूले हैं 
सबसे बड़ा मनोरंजन इनका ! 
लेकिन इन सबसे तुम्हारा क्या वास्ता ? 
जानती हूँ फिरा दोगे
तुम इनका भी दिमाग 
पढ़ा दोगे इन्हें भी हानि लाभ की पट्टी
और लगा दोगे इनके मासूम सपनों 
और भोले संसार में भौतिकता की आग ! 
कर लो जो करना है तुम्हे
स्वीकार है मुझे तुम्हारी हर चुनौती !
युग युग सही है मैंने यह पीड़ा 
कदम कदम पर झेली है ऐसी हर पनौती  ! 
नारी हूँ मैं 
पर अबला नहीं 
जान लो मुझे 
दुश्मन पर
जो पड़ जाये भारी 
वो बला हूँ मैं ! 


साधना वैद  



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