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Tuesday, September 4, 2018

गुरु शिष्य



शिक्षक दिवस पर विशिष्ट 

गुरु गोविन्द 
खड़े मेरे सामने
शीश उठाये 

भ्रमित मन 
सोच है भारी शीश 
किसे नवाये 

राह दिखाओ 
हरो विपदा सारी 
बाँँके बिहारी 

किसको गहूँँ 
असमंजस भारी 
कृष्ण मुरारी

गुरु को बड़ा 
बताया था जग ने 
जानता हूँ मैं 

गुरू का स्थान 
है प्रभु से भी ऊँचा
मानता हूँ मैं 

लेकिन है क्या 
शिक्षक का दायित्व 
जानते हैं वे ?

भोले बच्चों का 
क्या खुद को सर्जक 
मानते हैं वे ?  

निर्दय होके 
बच्चों पे हिंसा नहीं 
गुरु का धर्म 

देना सुशिक्षा 
सँँवारना  व्यक्तित्व 
गुरू का कर्म 

हुए शिक्षक 
लक्ष्मी के उपासक 
भूले कर्तव्य 

छोड़ी कलम 
भूले सरस्वती को 
उठाया द्रव्य 

देना सम्मान 
आदेश का पालन 
छात्र का कर्म 

गुरु की शिक्षा 
धारना अंतर में 
छात्र का धर्म 

जीवन डोर 
सौंप दी है तुमको 
पार लगाना 

दे के सुशिक्षा 
संस्कार औ' करुणा
मान बढ़ाना 

हर के तम 
भर देना प्रकाश 
सूर्य समान 

मेरे श्रद्धेय 
मेरे अभिभावक 
तुम्हें प्रणाम 



साधना वैद 








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