पंछियों
के स्वर मधुर खोने लगे
चाँद
तारे क्लांत हो सोने लगे
क्षीण
होती प्रिय मिलन की आस है
मलिन
मुख से जा रहा मधुमास है !
वन्दना
के स्वर शिथिल हो मौन हैं
करें
किसका गान अतिथि कौन है
भ्रमित
नैनों में व्यथा का भास है
भाव
विह्वल जा रहा मधुमास है !
राह
कितनी दूर तक सुनसान है
पंथ की
कठिनाइयों का भान है
किन्तु
मन में ढीठ सा विश्वास है
आओगे
तुम’ जा रहा
मधुमास है !
प्रेम
की प्रतिमा सजाने के लिए
अर्चना
के गीत गाने के लिये
तृषित
उर में भावना का वास है
चकित
विस्मित ठगा सा मधुमास है !
हृदय की
तृष्णा विकल हो बह रही
युगों
से पीड़ा विरह की सह रही
प्रियमिलन
की साध का यह मास है
व्यथित
व्याकुल जा रहा मधुमास है !
आओगे कब
फूल मुरझाने लगे
खुशनुमां
अहसास भरमाने लगे
जतन से
थामे हूँ जो भी पास है
आ भी
जाओ जा रहा मधुमास है !
साधना
वैद
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका श्वेता जी ! त्यौहार की व्यस्तता के चलते नया कुछ लिखने का समय ही नहीं मिला ! मेरी पुरानी रचनाओं को पाठकों तक पहुँँचाने के लिए और हमकदम के सफ़र में साथ ले चलने के लिए आपका तहे दिल से आभार !
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