मेरे मौन को तुम मत कुरेदो !
यह मौन जिसे मैंने धारण किया है
दरअसल मेरा कम और
तुम्हारा ही रक्षा कवच अधिक है !
इसे ऐसे ही अछूता रहने दो
वरना जिस दिन भी
इस अभेद्य कवच को
तुम बेधना चाहोगे
मेरे मन की प्रत्यंचा से
छूटने को आतुर
उलाहनों उपालम्भों
आरोपों प्रत्यारोपों के
तीक्ष्ण बाणों की बौछार
तुम सह नहीं पाओगे !
मेरे मौन के इस परदे को
ऐसे ही पड़ा रहने दो
दरअसल यह पर्दा
मेरी बदसूरती के
अप्रिय प्रसंगों से कहीं अधिक
तुम्हारी मानसिक विपन्नता की
उन बदरंग तस्वीरों को छुपाता है
जो उजागर हो गयीं
तो तुम्हारी कलई खुल जायेगी
और तुम उसे भी कहाँ
बर्दाश्त कर पाओगे !
मेरे मौन के इस उद्दाम आवेग को
मेरे मन की इस
छिद्रविहीन सुदृढ़ थैली में
इसी तरह निरुद्ध रहने दो
वगरना जिस भी किसी दिन
इसका मुँह खुल जाएगा
मेरे आँसुओं की प्रगल्भ,
निर्बाध, तूफानी बाढ़
मर्यादा के सारे तट बंधों को
तोड़ती बह निकलेगी
और उसके साथ तुम्हारे
भूत भविष्य वर्त्तमान
सब बह जायेंगे और
शेष रह जाएगा
विध्वंस की कथा सुनाता
एक विप्लवकारी सन्नाटा
जो समय की धरा पर
ऐसे बदसूरत निशाँ छोड़ जाएगा
जिन्हें किसी भी अमृत वृष्टि से
धोया नहीं जा सकेगा !
इसीलिये कहती हूँ
मेरा यह मौन
मेरा कम और तुम्हारा
रक्षा कवच अधिक है
इसे तुम ना कुरेदो
तो ही अच्छा है !
यह मौन जिसे मैंने धारण किया है
दरअसल मेरा कम और
तुम्हारा ही रक्षा कवच अधिक है !
इसे ऐसे ही अछूता रहने दो
वरना जिस दिन भी
इस अभेद्य कवच को
तुम बेधना चाहोगे
मेरे मन की प्रत्यंचा से
छूटने को आतुर
उलाहनों उपालम्भों
आरोपों प्रत्यारोपों के
तीक्ष्ण बाणों की बौछार
तुम सह नहीं पाओगे !
मेरे मौन के इस परदे को
ऐसे ही पड़ा रहने दो
दरअसल यह पर्दा
मेरी बदसूरती के
अप्रिय प्रसंगों से कहीं अधिक
तुम्हारी मानसिक विपन्नता की
उन बदरंग तस्वीरों को छुपाता है
जो उजागर हो गयीं
तो तुम्हारी कलई खुल जायेगी
और तुम उसे भी कहाँ
बर्दाश्त कर पाओगे !
मेरे मौन के इस उद्दाम आवेग को
मेरे मन की इस
छिद्रविहीन सुदृढ़ थैली में
इसी तरह निरुद्ध रहने दो
वगरना जिस भी किसी दिन
इसका मुँह खुल जाएगा
मेरे आँसुओं की प्रगल्भ,
निर्बाध, तूफानी बाढ़
मर्यादा के सारे तट बंधों को
तोड़ती बह निकलेगी
और उसके साथ तुम्हारे
भूत भविष्य वर्त्तमान
सब बह जायेंगे और
शेष रह जाएगा
विध्वंस की कथा सुनाता
एक विप्लवकारी सन्नाटा
जो समय की धरा पर
ऐसे बदसूरत निशाँ छोड़ जाएगा
जिन्हें किसी भी अमृत वृष्टि से
धोया नहीं जा सकेगा !
इसीलिये कहती हूँ
मेरा यह मौन
मेरा कम और तुम्हारा
रक्षा कवच अधिक है
इसे तुम ना कुरेदो
तो ही अच्छा है !
चित्र - गूगल से साभार
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (०९ -११ -२०१९ ) को "आज सुखद संयोग" (चर्चा अंक-३५१४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Delete
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
10/11/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप भाई ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
११ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनुराधा जी !
Deleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जी !
ReplyDeleteवाह बेहतरीन
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी ,लाजबाब सृजन साधना दी ,सादर नमन
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