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Thursday, January 2, 2020

मुझे अच्छा लगता है




इन दिनों
मन की खामोशियों को
रात भर गलबहियाँ डाले
गुपचुप फुसफुसाते हुए सुनना
मुझे अच्छा लगता है !  

अपने हृदय प्रकोष्ठ के द्वार पर
निविड़ रात के सन्नाटों में
किसी चिर प्रतीक्षित दस्तक की
धीमी-धीमी आवाज़ों को
सुनते रहना
मुझे अच्छा लगता है !
  
रिक्त अंतरघट की  
गहराइयों में हाथ डाल
निस्पंद उँगलियों से
सुख के भूले बिसरे
दो चार पलों को  
टटोल कर ढूँढ निकालना
मुझे अच्छा लगता है !

अतीत की वीथियों में क्रमश: 
धीमी होती जाती अनगिनती 
जानी अनजानी ध्वनियों के 
कोलाहल के बीच 
प्राणों से भी प्रिय 
और साँसों से भी अनमोल
गिनी चुनी चंद दुआओं की ध्वनि को  
बड़ी एकाग्रता से सुनने की चेष्टा करना 
मुझे अच्छा लगता है ! 
  
थकान के साथ
शिथिलता का होना  
अनिवार्य है ,
शिथिलता के साथ
पलकों का मुँदना भी
तय है और
पलकों के मुँद जाने पर
तंद्रा का छा जाना भी
नियत है ! 

लेकिन सपनों से खाली
इन रातों में
थके लड़खड़ाते कदमों से  
खुद को ढूँढ निकालना
और असीम दुलार से
खुद ही को निज बाहों में समेट  
आश्वस्त करना  
मुझे अच्छा लगता है !



साधना वैद  





11 comments :

  1. हार्दिक धन्यवाद लोकेश जी ! आभार आपका !

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  2. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति प्रिय सखी साधनाजी।नववर्ष की अनंत शुभकामनाएँ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुजाता जी ! आपको भी नव वर्ष की अनंत अशेष शुभकामनाएं !

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  3. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. रिक्त अंतरघट की
    गहराइयों में हाथ डाल
    निस्पंद उँगलियों से
    सुख के भूले बिसरे
    दो चार पलों को
    टटोल कर ढूँढ निकालना
    मुझे अच्छा लगता है !


    अद्भूत! वाकई बहुत बढ़िया लिखा है आपने। सादर अभिनंदन।
    आपको नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रकाश जी ! नव वर्ष आपके लिए भी मंगलमय हो !

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  5. हमें भी अच्छा लगता है, साधना जी. बहुत सुकून भरी कविता.आने वाला समय इतना ही सुकून भरा हो. अभिनन्दन. शुभकामनायें.

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    1. हार्दिक धन्यवाद नूपुरम जी ! आभार आपका !

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  6. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
    बहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें

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  7. नमस्कार संजय ! स्वागत है आपका ! हार्दिक धन्यवाद आपका !

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