इन दिनों
मन की खामोशियों को
रात भर गलबहियाँ डाले
गुपचुप फुसफुसाते हुए सुनना
मुझे अच्छा लगता है !
अपने हृदय प्रकोष्ठ के द्वार पर
निविड़ रात के सन्नाटों में
किसी चिर प्रतीक्षित दस्तक की
धीमी-धीमी आवाज़ों को
सुनते रहना
मुझे अच्छा लगता है !
रिक्त अंतरघट की
गहराइयों में हाथ डाल
निस्पंद उँगलियों से
सुख के भूले बिसरे
दो चार पलों को
टटोल कर ढूँढ निकालना
मुझे अच्छा लगता है !
अतीत की वीथियों में क्रमश:
धीमी होती जाती अनगिनती
जानी अनजानी ध्वनियों के
कोलाहल के बीच
प्राणों से भी प्रिय
और साँसों से भी अनमोल
गिनी चुनी चंद दुआओं की ध्वनि को
बड़ी एकाग्रता से सुनने की चेष्टा करना
मुझे अच्छा लगता है !
थकान के साथ
शिथिलता का होना
अनिवार्य है ,
शिथिलता के साथ
पलकों का मुँदना भी
तय है और
पलकों के मुँद जाने पर
तंद्रा का छा जाना भी
नियत है !
लेकिन सपनों से खाली
इन रातों में
थके लड़खड़ाते कदमों से
खुद को ढूँढ निकालना
और असीम दुलार से
खुद ही को निज बाहों में समेट
आश्वस्त करना
मुझे अच्छा लगता है !
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद लोकेश जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति प्रिय सखी साधनाजी।नववर्ष की अनंत शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुजाता जी ! आपको भी नव वर्ष की अनंत अशेष शुभकामनाएं !
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब..
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteरिक्त अंतरघट की
ReplyDeleteगहराइयों में हाथ डाल
निस्पंद उँगलियों से
सुख के भूले बिसरे
दो चार पलों को
टटोल कर ढूँढ निकालना
मुझे अच्छा लगता है !
अद्भूत! वाकई बहुत बढ़िया लिखा है आपने। सादर अभिनंदन।
आपको नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
हार्दिक धन्यवाद प्रकाश जी ! नव वर्ष आपके लिए भी मंगलमय हो !
Deleteहमें भी अच्छा लगता है, साधना जी. बहुत सुकून भरी कविता.आने वाला समय इतना ही सुकून भरा हो. अभिनन्दन. शुभकामनायें.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद नूपुरम जी ! आभार आपका !
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें
नमस्कार संजय ! स्वागत है आपका ! हार्दिक धन्यवाद आपका !
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