ऐ हंसवाहिनी
माँ शारदे
दे दो ज्ञान !
सद्मति और संस्कार से
अभिसिंचित करो
हमारे मन प्राण !
गूँजे दिग्दिगंत में
चहुँ ओर
तुम्हारा यश गान !
शरण में आये माँ
उर में धर
तेरा ही ध्यान !
तू ही मान हमारा माँ
तू ही अभिमान !
हर लो तम और
जला दो ज्ञान की
ज्योति अविराम !
दूर कर दो माँ
जन जन का अज्ञान !
चरणों में
शीश नवाऊँ मैं
स्वीकार करो माँ
मेरा प्रणाम !
साधना वैद
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.1.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3596 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार दिलबाग जी ! सादर वन्दे !
Deleteसादर नमन..
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद दिग्विजय जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteहमारा बचपन तो 'वर दे वीणा वादिनी वर दे' सुनते बीता है.
जी बिलकुल ! उन दिनों कई स्कूलों की प्रार्थना हुआ करती थी ! आपका हार्दिक धन्यवाद एवं आभार गोपेश जी !
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 30 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बसंतपंचमी की शुभ कामनाएं |उम्दा लिखा है |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteमाँ शारदे की कृपा बनी रहे!
जी ! हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद आपका कविता जी ! आभार !
Deleteअति उत्तम प्रार्थना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर !
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