हमने था शामिल किया अपनी दुआओं में तुझे
पर न शामिल हो सके तेरी दुआओं में कभी,
दूर था तेरा ठिकाना रास्ता दुश्वार था
हम जतन करते रहे तुझ तक पहुँचने के सभी !
पर मिली ना मंज़िलें, ना रास्तों का था पता
हम तेरी गलियों में यूँ बेआसरा भटका किये
आँख में तस्वीर तेरी, दिल में तेरी आरज़ू
बस तेरे साए को छूने का भरम मन में लिए !
अब ना तेरी आरज़ू, ना याद, ना कोई गिला
आज मन का राग ज्यों वैराग्य ही से युक्त है
नाम था तेरा मेरी जिन प्रार्थनाओं में कभी
पंक्तियाँ सारी वो उन गीतों से बिलकुल मुक्त
हैं !
साधना वैद
शिकवा-गिला तो अब भी बाक़ी लग ही रहा है !
ReplyDeleteइस फ़ैसले को सिर्फ़ रूठना मान लेते हैं.
हार्दिक धन्यवाद गोपेश जी ! आभार आपका !
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 06 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteसादर
हार्दिक धन्यवाद ज्योति जी ! सादर आभार आपका !
Deleteबंधन से मुक्त होती सुंदर कविता.
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार राकेश जी ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर !
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