“मरना है क्या ? कहाँ उधर खिसका जा रहा है सड़क
के किनारे ? कोई गाड़ी आयेगी आधी रात में और तुझे ठोक जायेगी तो सोते में पता भी नहीं
चलेगा !”
झुँझलाते हुए बिलमा ने ज्वर से निढाल अपने पति चंदू की टाँग पकड़ उसे ऊपर
फुटपाथ के बीच में घसीटा !
“ऐसा भी कहाँ होता है री बिलमा हमारे साथ !”
गहरी साँस लेते हुए चंदू बुदबुदाया !
“जाने कौन सी किस्मत लिखा कर लाये हैं अपने
कपाल पर ! ना काम का ठिकाना ना रोटी का, ना दवा दारू की कोई जुगत ना बच्चों के सर
पे छत ! ऐसी जिंदगानी से तो मौत ही भली ! कोई गाड़ी ही ठोक जाए तो शायद कुछ दिन के
लिए बच्चों के लिए रोटी पानी का जुगाड़ हो जाए !”
एक रोटी के लिए छीना झपटी करते, माँ की मार
खाने के बाद गहरी नींद में सोये बच्चों की ओर अपराध भाव से ग्रस्त चंदू ने उचटती
सी नज़र डाली !
साधना वैद
ध्रुव सत्य
ReplyDeleteसादर नमन..
हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! आपका बहुत बहुत आभार सखी !
Delete“जाने कौन सी किस्मत लिखा कर लाये हैं अपने कपाल पर ! ना काम का ठिकाना ना रोटी का, ना दवा दारू की कोई जुगत ना बच्चों के सर पे छत ! ऐसी जिंदगानी से तो मौत ही भली ! कोई गाड़ी ही ठोक जाए तो शायद कुछ दिन के लिए बच्चों के लिए रोटी पानी का जुगाड़ हो जाए !”
ReplyDeleteआज के परिवेश में कमोवेश हर गरीब व अभावग्रस्त परिवार की यही भावना होगी। ऐसे माता-पिता, सोचें भी तो और क्या सोचें ।
ऐसे अनेकों मन की आकुलता व विवशता को आपने कम शब्दों में ही उकेर कर रख दिया है।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया साधना वैध जी।
इस महामारी व लाॅकडाउन के वक्त, ऐसे वंचित वर्ग के लिए कुछ न कुछ हमें करना ही चाहिए।
जी ! बिलकुल पुरुषोत्तम जी ! स्थानीय लेवल पर यथा संभव कोशिश कर रहे हैं हम लोग भी ! अभी पिछले सप्ताह हमारी कोलोनी में घरों में काम करने के लिए आने वाले सभी काम वालों को सहायतार्थ धन एकत्रित करके पाँच किलो आटा, एक लीटर रिफाइंड तेल, एक किलो चीनी, एक किलो सूजी, एक किलो दाल, दो किलो आलू और लगभग तीन चार किलो का एक साबित काशीफल दिया ! लॉक डाउन की अवधि अगर बढ़ी तो फिर से देंगे ! वेतन तो पूरा देना ही है ! आपका दिल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
Deleteबहुत गहराई से सोच कर उकेरा है शब्दों में |उम्दा लिखा है |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जी ! आभार आपका !
Deleteमार्मिक सत्य है।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मीना जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसमाज का असली चेहरा दिखाया आपने आदरणीया ।बहुत ही मार्मिक ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शुभा जी ! आभार आपका !
Deleteगहरी सच्चाई।हृदय स्पर्शी कथा।
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद सुजाता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआज के समाज का कटु सत्य बयां करती सुन्दर सार्थक लघुकथा।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! आभार आपका !
Deleteसीने में टीस जगाती रचना आदरणीया | बहुत बड़ा अपराधबोध जगता है जब बेघर और पशुवत जिन्दगी जीते ऐसे लोग नजर आते हैं | उनकी आत्मा कलपती तो जरुर होगी इतने बड़े कंक्रीट के जंगल में काश एक छत उनके नाम की भी होती | अत्यंत मार्मिक रचना जो समाज के हिस्से का कडवा सच है | सादर आभार और प्रणाम |
ReplyDeleteरचना आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सफल हुआ रेणु जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सप्रेम वन्दे !
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