दीपावली की रात थी ! चारों तरफ पटाखों का शोर था ! कहीं अनार छोड़े जा रहे थे तो कहीं बम चल रहे थे ! कहीं रॉकेट शूँ-शूँ कर आसमान में सितारों से गले मिलने के लिए उड़े जा रहे थे तो कहीं लंबी सड़क पर एक कोने से दूसरे कोने तक बिछी हुई लड़ियों की श्रंखला आने जाने वाले राहगीरों को त्रस्त करती ज़ोर के धमाकों के साथ बजती ही जा रही थी ! सुरेश के यहाँ भी कॉलोनी के बहुत सारे बच्चे और बड़े एकत्रित हो गए थे और बड़ी धूमधाम के साथ पटाखे चलाये जा रहे थे ! उसके घर के नीम के पेड़ पर गौरैया का नन्हा चूज़ा डरा सहमा हुआ घोंसले में अपनी माँ के पंखों के नीचे दुबका हुआ था ! भय के मारे उसका कलेजा काँप रहा था ! माँ बार-बार उसे चोंच से सहला रही थी लेकिन उसका भयभीत मन किसी भी तरह से आश्वस्त नहीं हो रहा था ! कॉलोनी के अनेकों जांबाज़ कुत्ते इस समय पटाखों से डर कर सड़क पर खड़ी कारों के नीचे दुबक कर बैठ गए थे !
नीम के इस वृक्ष पर और भी कई प्राणी रहते थे ! बगल वाली डाल पर बन्दर मामा का परिवार रहता था ! ऊपर वाली डाल पर खुराफाती भूरी बिल्ली रहती थी ! नीचे वाली डाल पर गिलहरी मौसी का घर था ! आम दिनों में तो चूज़े को इन लोगों से भी डर लगता था लेकिन आज सबकी मनोदशा पटाखों के कान फोडू शोर के मारे एक सी हो रही थी ! तभी अपनी दिशा से भटक कर एक रॉकेट सीधा नीम के पेड़ की तरफ आया और पत्तों के बीच में दुबके बन्दर मामा के छोटे से बच्चे की पीठ में चुभ गया ! बच्चा पेड़ से नीचे गिरा धड़ाम ! बंदरिया मामी गुस्से से एकदम आगबबूला होकर ज़ोर से चिचियाई ! उसकी आवाज़ सुन कर ढेर सारे बन्दर आसपास के सारे पेड़ों से भाग कर नीम के पेड़ के पास आ गए ! और सबने मिल कर वहाँ ज़ोर से धावा बोल दिया जहाँ कॉलोनी के लोग मिल कर पटाखे चला रहे थे ! कोई फुलझड़ी का पैकेट लेकर भागा तो कोई अनार का ! किसीने झिलझिल का पैकेट फाड़ डाला तो किसीने बम का पैकेट हवा में उछाल दिया ! लोगों में हड़कम्प मच गया बंदरों की ये आफत कहाँ से टूट पड़ी ! इस सारे तमाशे के बीच मामी अपने बच्चे को सीने से चिपटाए व्याकुल स्वर में क्रंदन कर रही थी ! सुरेश के पापा की नज़र उस पर पड़ी तो वे फ़ौरन सब समझ गए ! उन्होंने तुरंत ही डॉक्टर को फोन कर बुलवाया और नन्हे बन्दर का उपचार करवाया ! उसे चोट अधिक नहीं लगी थी लेकिन वह डर बहुत गया था ! उस दिन पटाखे चलाने का कार्यक्रम उसी वक्त स्थगित हो गया ! सुरेश के पापा ने सबको बड़े प्यार से समझाया कि ऐसी आतिशबाजी चलाने से हमको बचना चाहिए जिस पर हमारा कोई नियंत्रण ना हो ! इंसानों के अलावा हमारे आसपास के परिवेश में अनेकों प्राणी रहते हैं जो हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग हैं हमें उनकी सुरक्षा और सुविधा का भी ध्यान रखना चाहिए ! पेड़ पौधों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना चाहिए ! अनार आदि चलाने से दूर तक और देर तक चिंगारियाँ धरती पर गिरती रहती हैं जिनसे पौधे झुलस जाते हैं !
सबने सुरेश के पापा की बात का अनुमोदन किया और संकल्प लिया कि आइन्दा वे कभी ऐसे पटाखे नहीं चलाएंगे जिनसे हमारे पर्यावरण को हानि पहुँचे !
साधना वैद
पटाखा की धूम में लोग मूक प्राणियों को भूल जाते हैं और प्रदूषण होता है सो अलग. बाल कथा के माध्यम से आपने अच्छा सन्देश दिया.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जेन्नी जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
DeleteGeat work RAJASTHAN GK
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद महोदय !
Deleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 20-11-2020) को "चलना हमारा काम है" (चर्चा अंक- 3891 ) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
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"मीना भारद्वाज"
हार्दिक धन्यवाद मीना जी ! आपका बहुत बहुत आभार ! सप्रेम वन्दे सखी !
Deleteआपका ह्रदय से बहुत बहुत आभार केडिया जी !
ReplyDeleteप्रेरणादायक बहुत सुंदर कथा...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शरद जी ! आप बड़े दिनों के बाद आई हैं ब्लॉग पर ! हार्दिक स्वागत है आपका !
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