सड़क पर भीड़ थी,
कोलाहल था, हलचल थी
आँखों के सामने
चलती बस से कूद कर
सड़क पर गिरी घायल लड़की की
तड़पती हुई देह थी !
यह दम तोड़ती लड़की
सड़क वाली भीड़ में
किसीकी बेटी, बहन, दोस्त, बीबी
या परिचित नहीं थी
इसलिए उनके वास्ते वह
सिर्फ एक तमाशा थी
और यह भीड़ थी तमाशबीन !
किसीने यह जानने की
कोशिश नहीं की लड़की
चलती बस से क्यों कूदी ?
उसके कपड़े फटे क्यों थे ?
उसके हाथों पर और चहरे पर
खरोंचें क्यों थी ?
और इन जख्मों और खरोंचों का
ज़िम्मेदार कौन था ?
हाँ उसके जिस्म पर
कहाँ कहाँ जख्म थे
इसे ज़रूर सब अपनी पैनी नज़रों से
ताड़ने की कोशिश कर रहे थे !
तमाशबीन अपनी नज़रों से ही
उसके शेष कपड़े फाड़ने में जुटे थे
और एक दूसरे को इशारों में
लड़की के बदन पर पड़े
जख्मों को दिखा रहे थे !
तभी सायरन बजाती आ गयी
पुलिस की गाड़ी !
तमाशबीनों की भीड़ छँटने लगी
पुलिस वालों के सवालों का जवाब
किसीके पास न था
अगर था भी तो कोई
देना नहीं चाहता था !
जब तक पुलिस नहीं आई
खूब आँखें सेक लीं !
पुलिस के आते ही
तमाशा ख़त्म हुआ और
अपनी अपनी राह मुड़ गये
सारे तमाशबीन !
चित्र -- गूगल से साभार
साधना वैद
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 23 नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteसत्य को उजागर करती सुंदर कृति..।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत खूब। सच्चाई यही है।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद वीरेन्द्र जी ! आभार आपका !
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