सुनते हैं
लड़कियों की शिक्षा के मामले में
हमारा देश में खूब विकास हुआ है !
लडकियाँ हवाई जहाज उड़ा रही हैं,
लडकियाँ फ़ौज में भर्ती हो रही हैं,
लड़कियाँ स्पेस में जा रही हैं,
डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक बन रही हैं,
नाटक, नृत्य, गायन, वादन, लेखन
सभी कलाओं में पारंगत होकर
अपना परचम लहरा रही हैं !
फिर यह कौन सी नस्ल है लड़कियों की
जिनका आये दिन बलात्कार होता है ?
जिनके चेहरों पर एसिड डाल
उन्हें जीवन भर का अभिशाप झेलने के लिए
विवश कर दिया जाता है ?
जो कम दहेज़ लाने पर आज भी
हमारे विकसित देश में सूखी लकड़ी की तरह
ज़िंदा जला दी जाती हैं ?
जो कम उम्र में ही ब्याह दी जाती हैं
और जिनके हाथों में किताब कॉपी छीन
कलछी, चिमटा, चकला, बेलन थमा दिया जाता है ?
जो बारम्बार मातृत्व का भार ढोकर
पच्चीस बरस की होने से पहले ही बुढ़ा जाती हैं ?
हाँ हमारे सैकड़ों योजनाओं वाले देश में
लड़कियों की एक नस्ल ऐसी भी है
जिनके बेनूर, बेरंग, बेआस जीवन में
जीने का अर्थ सिर्फ समलय में
साँसों का चलते रहना ही होता है
बस, इसके सिवा कुछ और नहीं !
साधना वैद
बहुत सार्थक पोस्ट।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद नीतीश जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteचिंतनीय विषय।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शिवम् जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteचिंतनीय
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद एवं आभार प्रिय सखी मीना जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteआपने ठीक कहा साधना जी।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteविचारणीय... कहते हैं एक भारत में कई भारत है जिनमें लोग अलग अलग कालखंडों में जी रहे हैं....
ReplyDeleteबिलकुल सहमत हूँ आपसे ! ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार आपका विकास जी !
Deleteये एक पैरलल यूनिवर्स है हमारे देश भारत में एक तरफ़ बेटियाँ आसमान की ऊँचाइयाँ छू रही हैं
ReplyDeleteतो दूसरी तरफ़ लड़कियाँ जैसा आपने कहा बेनूर, बेरंग, बेआस जीवन जीने के लिये मजबूर हैं
उनके साथ घिनौने अपराध हो रहे हैं
हमें आत्म अवलोकन की ज़रूरत है कि हम कैसा समाज बना रहे हैं
काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है, कहा जा चुका है
ये हलाहल जाने कब नष्ट होगा
हमें जागरूकता की अलख जलाए रखना है मिश्रा जी ! इस चिंगारी को राख नहीं होने देना है ! कभी तो ज्ञान का प्रकाश फैलेगा यही आशा कर सकते हैं ! आपका मेरे इस ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है ! दिल से आभार एवं धन्यवाद !
Deleteबहुत ही सार्थक रचना मैम!
ReplyDeleteआपको एक दम सत्य कहा कि लड़कियों की एक नस्ल ऐसी है जिनकी सिर्फ सांस चलती है ना उनके कोई अपने सपने होते ना ही अपने विचार सही मायने में कहें तो जिंदा लाश बन कर अपना जीवन काट रही होती हैं! ये सत्य है कि आज लड़कियां आसमान में ऊचीं उड़ान भर रही है अंतरिक्ष में कदम रख रही है पर ये भी सत्य है कि एक तबका ऐसा भी है जहाँ लड़कियां चौखट से बाहर कदम निकालने की लड़ाई आज भी लड़ रही है, उनके आंखों में भी सुनहरे सपने पलते है पर वो सिर्फ डायरी के पन्नों में भी उलझ कर रह जाते है अगर हिम्मत करके किसी तरह डायरी से बाहर आ भी जाते है ,तो उनके पर काट दिए जाते है!
हार्दिक धन्यवाद मनीषा जी ! मेरा लेखन आपके हृदय को विचलित कर गया मेरा लेखन सफल हो गया ! इसी तरह की विसंगतियों के साथ हमारा समाज जीता है यह एक कटु सत्य है और इसे स्वीकार करना ही होगा ! ऐसे में महिला सशक्तिकरण की कोई निर्णायक परिभाषा को गढ़ना कदापि उचित नहीं ! आपका हृदय से बहुत बहुत आभार !
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