मुझे याद है जब वरुण
क्लास वन में आया था तो उसे पहली बार स्कूल ड्रेस के साथ मुझे भी गले में बाँधना
अनिवार्य हो गया था ! वरुण कितना खुश था ! सुबह जल्दी जल्दी तैयार होकर मुझे उठा
कर पापा के पास पहुँच जाता,
“ ये टाई आप बाँध
दीजिये ना पापा ! मम्मी को अच्छी नॉट बाँधनी नहीं आती !”
पापा मुस्कुराते और
मुझे दो तीन बार लपेटे देकर वरुण को भी सिखाते कि कैसे सुन्दर नॉट बाँधते हैं !
स्कूल से आते ही वरुण सबसे पहले मुझे उतार कर करीने से खूँटी पर टाँगता और हर
शनिवार को मम्मी को याद दिला कर धुलवा कर और प्रेस करवा के रखता ! लेकिन धीरे धीरे
मेरे साथ उसका यह अनुराग समय के साथ धूमिल पड़ने लगा ! अब स्कूल से लौट कर जब भी
आता कहीं बस्ता फेंकता, कहीं जूते और कपड़े फेंकता और मैं भी कमरे के किसी कोने में
पड़ी सिसकती रहती ! अभी तीन चार दिन पहले स्कूल में वरुण की पैंट्स का हुक उखड़ गया
तो वरुण ने मुझे ही गले से खोल कर अपने पैंट्स के लूप्स में डाल कर मुझसे बेल्ट का
काम भी करवा लिया ! अपनी इतनी बेइज्ज़ती देख कर मेरा दिल रोने को हो आता है !
और आज तो हद ही हो
गयी ! मैं तो समझ ही नहीं पाती मेरा इतना बड़ा भक्त वरुण कैसे मेरे साथ ऐसा कर सकता
है ! आज स्कूल से लौटते समय मस्ती करते हुए समीर ने खेल खेल में वरुण को ज़ोर से
धक्का दे दिया ! वरुण तो सम्हल गया पर उसका बस्ता ज़मीन पर गिर गया और नीचे से फट
गया ! सारी किताबें बैग से निकल कर ज़मीन पर आ गिरीं ! वरुण एक चीज़ बैग में रखता तो
दूसरी गिर जाती ! अंतत: उसे मेरी ही सुध आई ! तुरंत गले से मुझे खींचा ! सारी
किताबें और पेन्सिल बॉक्स वगैरह कायदे से फटे बैग में जमाये और कस कर दो तीन लपेटे
देकर मुझसे रस्सी का काम ले अपने बस्ते को बाँध दिया ! अब मैं समझ नहीं पा रही हूँ
कि अपनी इन बहुउद्देश्यीय क्षमताओं पर मैं गर्व करूँ या अपनी इतनी बेकद्री देख कर आँसू
बहाऊँ !
साधना वैद
बहुत सुन्दर आत्मकथा है |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 7 जून 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हृदय से आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार संगीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteबहुत सुंदर और गहन लेखन...। खूब बधाई आपको।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संदीप जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteवैसे टाई भले ही अपनी बेकद्री समझे लेकिन वरुण के दिमाग की तो दाद देनी पड़ेगी .
ReplyDeleteपरिस्थिति जो न सिखा दे वह थोड़ा है संगीता जी ! वरुण ने भी वही किया जो वह उस समय कर सकता था ! हार्दिक आभार आपका ! आपकी प्रतिक्रिया विमुग्ध कर जाती है ! दिल से आभार आपका !
Deleteसीख देती आत्मकथा।
ReplyDeleteबच्चे हो या बड़े किसी भी वस्तु या इंसान का सुविधानुसार उपयोग करते हैं और अनुपयोगी लगने पर बेरहमी से फेंक भी देते हैं।
प्रणाम
सादर।
हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बिम्ब के माध्यम से कहानी के मर्म तक पहुँचने के लिए आपका हृदय से आभार सखी ! दिल से धन्यवाद !
Deleteहे भगवान!! टाई ने भी अपनी पीड़ा कह ही डाली👌👌👌 बहुत रोचक कथा आदरणीय साधना जी 🙏🌷🌷💐💐
ReplyDeleteजी ! बहुत बहुत धन्यवाद आपका रेणु जी ! दिल से आभार !
Deleteअच्छा विषय चुना...बच्चों के तो बहुत काम का है😂
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