Followers

Saturday, June 5, 2021

टाई की आत्मकथा

 


मुझे याद है जब वरुण क्लास वन में आया था तो उसे पहली बार स्कूल ड्रेस के साथ मुझे भी गले में बाँधना अनिवार्य हो गया था ! वरुण कितना खुश था ! सुबह जल्दी जल्दी तैयार होकर मुझे उठा कर पापा के पास पहुँच जाता,

“ ये टाई आप बाँध दीजिये ना पापा ! मम्मी को अच्छी नॉट बाँधनी नहीं आती !”

पापा मुस्कुराते और मुझे दो तीन बार लपेटे देकर वरुण को भी सिखाते कि कैसे सुन्दर नॉट बाँधते हैं ! स्कूल से आते ही वरुण सबसे पहले मुझे उतार कर करीने से खूँटी पर टाँगता और हर शनिवार को मम्मी को याद दिला कर धुलवा कर और प्रेस करवा के रखता ! लेकिन धीरे धीरे मेरे साथ उसका यह अनुराग समय के साथ धूमिल पड़ने लगा ! अब स्कूल से लौट कर जब भी आता कहीं बस्ता फेंकता, कहीं जूते और कपड़े फेंकता और मैं भी कमरे के किसी कोने में पड़ी सिसकती रहती ! अभी तीन चार दिन पहले स्कूल में वरुण की पैंट्स का हुक उखड़ गया तो वरुण ने मुझे ही गले से खोल कर अपने पैंट्स के लूप्स में डाल कर मुझसे बेल्ट का काम भी करवा लिया ! अपनी इतनी बेइज्ज़ती देख कर मेरा दिल रोने को हो आता है !

और आज तो हद ही हो गयी ! मैं तो समझ ही नहीं पाती मेरा इतना बड़ा भक्त वरुण कैसे मेरे साथ ऐसा कर सकता है ! आज स्कूल से लौटते समय मस्ती करते हुए समीर ने खेल खेल में वरुण को ज़ोर से धक्का दे दिया ! वरुण तो सम्हल गया पर उसका बस्ता ज़मीन पर गिर गया और नीचे से फट गया ! सारी किताबें बैग से निकल कर ज़मीन पर आ गिरीं ! वरुण एक चीज़ बैग में रखता तो दूसरी गिर जाती ! अंतत: उसे मेरी ही सुध आई ! तुरंत गले से मुझे खींचा ! सारी किताबें और पेन्सिल बॉक्स वगैरह कायदे से फटे बैग में जमाये और कस कर दो तीन लपेटे देकर मुझसे रस्सी का काम ले अपने बस्ते को बाँध दिया ! अब मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि अपनी इन बहुउद्देश्यीय क्षमताओं पर मैं गर्व करूँ या अपनी इतनी बेकद्री देख कर आँसू बहाऊँ !

 

साधना वैद

 


14 comments :

  1. बहुत सुन्दर आत्मकथा है |

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  3. आपकी लिखी  रचना  सोमवार 7  जून   2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।
    संगीता स्वरूप 

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार संगीता जी ! सप्रेम वन्दे !

      Delete
  4. बहुत सुंदर और गहन लेखन...। खूब बधाई आपको।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद संदीप जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  5. वैसे टाई भले ही अपनी बेकद्री समझे लेकिन वरुण के दिमाग की तो दाद देनी पड़ेगी .

    ReplyDelete
    Replies
    1. परिस्थिति जो न सिखा दे वह थोड़ा है संगीता जी ! वरुण ने भी वही किया जो वह उस समय कर सकता था ! हार्दिक आभार आपका ! आपकी प्रतिक्रिया विमुग्ध कर जाती है ! दिल से आभार आपका !

      Delete
  6. सीख देती आत्मकथा।
    बच्चे हो या बड़े किसी भी वस्तु या इंसान का सुविधानुसार उपयोग करते हैं और अनुपयोगी लगने पर बेरहमी से फेंक भी देते हैं।
    प्रणाम
    सादर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बिम्ब के माध्यम से कहानी के मर्म तक पहुँचने के लिए आपका हृदय से आभार सखी ! दिल से धन्यवाद !

      Delete
  7. हे भगवान!! टाई ने भी अपनी पीड़ा कह ही डाली👌👌👌 बहुत रोचक कथा आदरणीय साधना जी 🙏🌷🌷💐💐

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! बहुत बहुत धन्यवाद आपका रेणु जी ! दिल से आभार !

      Delete
  8. अच्छा विषय चुना...बच्चों के तो बहुत काम का है😂

    ReplyDelete