कितनी सुन्दर होती धरती, जो हम सब मिल जुल कर रहते
झरने गाते, बहती नदिया, दूर क्षितिज तक पंछी उड़ते
ना होता साम्राज्य दुखों का, ना धरती सीमा में बँटती
ना बजती रणभेरी रण की, ना धरती हिंसा से कँपती !
पर्वत करते नभ से बातें, जब जी चाहे वर्षा होती
सूखा कभी ना पड़ता जग में, फसल खेत में खूब उपजती
निर्मम मानव जब जंगल की, हरियाली पर टूट न पड़ता
भोले भाले वन जीवों के, जीवन पर संकट ना गढ़ता
जब सब प्राणी सुख से रहते, एक घाट पर पीते पानी
रामराज्य सा जीवन होता, बैर भाव की ख़तम कहानी
पंछी गाते मीठे सुर में, नदियाँ कल कल छल छल बहतीं
पेड़ों पर आरी ना चलती, कितनी सुन्दर होती धरती !
साधना वैद
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-0७-२०२१) को
'सघन तिमिर में' (चर्चा अंक- ४११४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
Deleteबहुत सुंदर भाव, सुंदर कविता !
ReplyDeleteस्वागत है ऋता जी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका !
Deleteसुंदर कल्पना । 👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
Delete!
सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुन्दर कल्पना ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुपमा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteअति सुंदर
ReplyDeleteस्वागत है सतीश जी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका !
Deleteक्या बात है!! कितनी सुन्दर कल्पना की आपने साधना जी। यदि ऐसा होता तो धरती पर राम राज्य ही होता। सद्भावना की आंकाक्षा संजोती रचना के लिए ढेरों बधाइयां और शुभकामनाएं 👌🙏🙏🌷🌷
ReplyDeleteपंछी गाते मीठे सुर में, नदियाँ कल कल छल छल बहतीं
ReplyDeleteपेड़ों पर आरी ना चलती, कितनी सुन्दर होती धरती !///
👌👌🙏🌷🙏🌷
भाव पूर्ण रचना
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना |