शिक्षक दिवस पर विशेष
गुरू रहे ना देव सम, शिष्य रहे ना भक्त
बदली दोनों की मती, बदल गया है वक्त !
शिक्षक व्यापारी बना, बदल गया परिवेश
त्याग तपस्या का नहीं, रंच मात्र भी लेश !
बच्चे शिक्षक का नहीं, करते अब सम्मान
मौक़ा एक न छोड़ते, करते नित अपमान !
कहते विद्या दान से, बड़ा न कोई दान
लेकिन लालच ने किया, इसको भी बदनाम !
कोचिंग कक्षा की बड़ी, मची हुई है धूम
दुगुनी तिगुनी फीस भर, माथा जाये घूम !
साक्षरता के नाम पर, कैसी पोलम पोल
नैतिकता कर्तव्य को, ढीठ पी गए घोल !
सच्चे झूठे आँकड़े, भरने से बस काम
प्रतिशत बढ़ना चाहिए, साक्षरता के नाम !
कक्षा नौ में छात्र सब, दिए गए हैं ठेल
जीवन के संघर्ष में, हो जायेंगे फेल !
लिख ना पायें नाम भी, ना सीखा कुछ काम !
करना होगा पितृ सम, शिक्षक को व्यवहार
रखें शिष्य भी ध्यान में, सविनय शिष्टाचार !
अध्यापक और छात्र में, हो न परस्पर भीत
जैसे भगवन भक्त में, होती पावन प्रीत !
गुरु होते भगवान सम, करिए उनका मान
विद्यार्थी संतान सम, रखिये उनका ध्यान !
साधना वैद
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(०५ -०९-२०२१) को
'अध्यापक की बात'(चर्चा अंक- ४१७८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अरे वाह ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, साधना दी।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteहर दोहा अलग अलग रूप दिखा रहा ।
ReplyDeleteसत्य को कहती प्रस्तुति ।
आपकी सराहना मिल गयी मेरा लिखना सार्थक हुआ ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार संगीता जी !
Deleteबहुत सुन्दर दोहे बन पड़े हैं |बहुत शानदार|
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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