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Wednesday, December 8, 2021

संवेदन व्यथाओं का

 



चुभता है दंश कभी निर्मम यथार्थ का ?

देखा प्रतिबिम्ब कभी दर्पण में स्वार्थ का ?

भीगी कभी पलकें लख लोगों के कष्टों को ?

पढ़ कर तो देखो निज कर्मों के पृष्ठों को

जानते हो क्या है दुखांत इन कथाओं का ?

पिघला क्या मन सुन संवेदन व्यथाओं का ?


माना हो सर्वश्रेष्ठ प्राणी इस सृष्टि में 

भीगते हो मगन निज प्रशंसा की वृष्टि में

लेकिन कब पोंछे हैं आँसू दुखियारों के  

चूल्हे कब जलते हैं निर्धन परिवारों के

फेंको ये इंद्रजाल स्वार्थ की प्रथाओं का

मत बैठो मौन सुन संवेदन व्यथाओं का !


जन जन के दुख से है कैसी यह निस्पृहता 

क्यों नहीं दिखती अब आँखों में विह्वलता

क्यों नहीं मिलता अब बातों में अपनापन

क्यों नहीं छिलता अब पीड़ा से पत्थर मन

चाहती हूँ बरस जाए विष सब घटाओं का

मन में हो केवल संवेदन व्यथाओं का !

 

साधना वैद

 

 

 


19 comments :

  1. बहुत सुन्दर भाव लिए रचना |

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-१२ -२०२१) को
    'सुनो सैनिक'(चर्चा अंक -४२७४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  4. पढ़ कर तो देखो निज कर्मों के पृष्ठों को

    जानते हो क्या है दुखांत इन कथाओं का

    सत्य वचन,सटिक अभिव्यक्ति सादर नमस्कार दी

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद कामिनी जी ! आभार आपका !

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  5. मन में हो केवल संवेदन व्यथाओं का !
    यथार्थ और सटीक अभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ

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    1. हार्दिक धन्यवाद मर्मज्ञ ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  6. बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई.

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    1. हार्दिक धन्यवाद जेन्नी जी ! दिल से आभार आपका !

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  7. अत्यंत. भावपूर्ण सृजन।
    सादर।

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    1. हृदय से धन्यवाद आपका श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार !

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  8. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  9. हार्दिक धन्यवाद उर्मिला जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  10. हार्दिक धन्यवाद भारती जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  11. बहुत सुन्दर !
    काश कि ऐसा हो जाए !

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    1. हार्दिक आभार आपका गोपेश जी ! रचना आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सफल हुआ ! दिल से बहुत बहुत धन्यवाद आपको !

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