Followers

Saturday, July 16, 2022

आगरा - जसवंत सिंह की छतरी

 



दोस्तों, अभी कुछ दिन पूर्व मैंने आपको झुनझुन कटोरा की सैर कराई थी ! आशा है आपको आनंद आया होगा ! चलिए आज चलते हैं एक और बहुत ही खूबसूरत स्थान पर जिसका नाम है जसवंत छतरी ! मुग़ल काल के दौरान किसी हिन्दू राजा द्वारा बनवाया गया यह एक ही स्मारक है ऐसा कई इतिहासकारों और विद्वानों का मानना है ! यह स्मारक अपने अतीत के वैभव और सौन्दर्य को समेट रखने की भरसक कोशिश करता हुआ आज भी खड़ा हुआ तो है लेकिन रखरखाव की कमी और पर्यटन विभाग एवं पुरातत्व विभाग की उदासीनता के चलते सैलानियों की नज़रों से दूर है और एकदम निसंग एकाकी गुमनामी के अँधेरे में उदास सा अपने गौरवशाली इतिहास की मर्मस्पर्शी कथा को खुद ही खुद से कहता और सुनता रहता है !

अगर आप जसवंत छतरी देखने के लिए उत्सुक हैं तो आपको आगरा के बल्केश्वर में यमुना किनारे बहुत ही घनी बसी हुई बस्ती में पतली पतली गलियों से होकर जाना होगा ! यहाँ पहुँचने के लिए गलियों में दिशा निर्देश के जो चिन्ह बने हैं वे भी पर्यटकों को भटकाने के लिए काफी हैं ! अगर आप बड़ी गाड़ी में हैं और पतली गलियों में गलत मुड़ जाते हैं तो बाहर निकलने में बड़ी दिक्कत होती है ! खैर ! जहाँ चाह वहाँ राह ! कहीं गाड़ी से कहीं पैदल उतर कर हम जैसे तैसे जसवंत छतरी पहुँच ही गए !
जसवंत छतरी की कहानी राजपूत राजा अमर सिंह राठौर से जुड़ी हुई है ! जिसके नाम का दरवाज़ा आज भी आगरा के लाल किले में अमर सिंह गेट के नाम से मशहूर है और अब तो किले का यही प्रमुख प्रवेश द्वार है ! इसी राजपूत राजा अमर सिंह के मरणोपरांत उनकी पत्नी अपने पति के शव के साथ इसी स्थान पर सती हुई थीं ! उनकी स्मृति और सम्मान में अमर सिंह के छोटे भाई राजा जसवंत सिंह ने यह छतरी सन १६४४ में बनवाई थी जो १६५८ तक बन कर पूरी हुई ! अमर सिंह राजस्थान के मारवाड़ राज्य के राजा गज सिंह के बड़े बेटे थे ! वे बहुत शूरवीर, स्वाभिमानी, और अपने उसूलों पर चलने वाले तेजस्वी योद्धा थे ! उनकी सौतेली माता उनसे अप्रसन्न रहती थीं और उनके विरुद्ध अपने पति को भड़काती रहती थीं ! इसके अलावा एक बार उन्होंने एक डाकू की मुगलों से रक्षा कर सहायता की थी इससे कुपित होकर राजा गजसिंह ने उन्हें राज्य से बेदखल कर दिया ! गज सिंह की मृत्यु के बाद उनके छोटे बेटे जसवंत सिंह मारवाड़ राज्य के राजा घोषित किये गए ! अमर सिंह अपनी वीरता और प्रतिभा के कारण मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के प्रिय दरबारियों में शुमार हुए और दरबार में उन्होंने अच्छा रुतबा और सम्मान प्राप्त किया और राजनैतिक मामलों में उनकी सलाह को बहुत महत्त्व दिया जाने लगा ! शाहजहाँ ने उन्हें नागौर का मनसबदार बना दिया और एक बहुत ही शानदार महल उन्हें भेंट किया ! दरबार में कई लोग उनके बढ़ते प्रभाव से जलने लगे जिनमें सलाबत खान का नाम सर्वोपरि था ! वह रिश्ते में शाहजहाँ का भाई था इसलिए कुछ अधिक ही निरंकुश भी था ! वह अमर सिंह राठौर को नीचा दिखाने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देता था ! कहते हैं एक बार अमर सिंह अनधिकृत रूप से कई दिनों तक दरबार से गैरहाजिर रहे ! सलाबत खान को मौक़ा मिल गया शाहजहाँ को भड़काने का ! दरबार में उपस्थित होने पर सलाबत खान ने अमर सिंह के साथ बहुत अपमानजनक ढंग से बात की ! अमर सिंह भी तैश में आ गए और बादशाह से भी उलझ पड़े ! शाहजहाँ ने उन पर भारी जुर्माना लगाया ! न देने की स्थिति में उनकी मनसबदारी महल वगैरह सब छीन लेने की धमकी भी दे डाली ! अमर सिंह का खून खौल उठा ! अमर सिंह की वीरता पूर्ण कहानी पर नौटंकी भी खूब खेली जाती है और फ़िल्में भी बन चुकी हैं ! इस दृश्य को नौटंकी वाले बड़े ही दिलचस्प तरीके से दिखाते हैं ! दरबार में सलाबत खान अमर सिंह को अपमानित करते हुए कहता है अगर जुर्माना समय से न भरा तो जमानत के लिए क्या रखोगे ! अमर सिंह तब अपनी तलवार लहराते हुए कहता है मेरी जमानत मेरी तलवार है और वह भरे दरबार में शाहजहाँ के सामने ही सलाबत खान का सिर धड़ से अलग कर देता है ! सारे दरबारी भयभीत होकर भाग खड़े होते हैं ! शाहजहाँ भी अपने रनिवास में जा छुपते हैं ! किले के सारे फाटक बंद कर दिए जाते हैं ! तब अमर सिंह किले की दीवार फाँद कर महल से बाहर भागते हैं ! शाहजहाँ ने अमर सिंह को जान से मार देने का फरमान सुना दिया और घोषणा कर दी कि जो अमर सिंह को मारेगा उसे नागौर का मनसबदार बना दिया जाएगा !

अमर सिंह की पत्नी हाड़ा रानी का भाई अर्जुन सिंह लालच में आ गया और अमर सिंह को बहला फुसला कर कि शाहजहाँ ने अमर सिंह को माफ़ कर दिया है और वो उनसे मिलना चाहते हैं उन्हें अपने साथ किले में ले गया ! तब किले का फाटक बंद था और छोटी सी खिड़की खुली हुई थी ! आत्माभिमानी अमर सिंह के सम्मान को ठेस लगी कि यह गेट इसलिए बंद किया गया है ताकि वे सर झुका कर अन्दर प्रवेश करें ! यह उन्हें गवारा न था ! उन्होंने पहले पैर अन्दर किये और जैसे ही पीछे की तरफ झुके अर्जुन सिंह ने उनकी छाती में खंजर घोंप कर उन्हें मार दिया ! जैसे ही शाहजहाँ को यह पता चला उन्हें अर्जुन सिंह पर बहुत क्रोध आया ! अमर सिंह जैसे शूरवीर को खोने का उन्हें बहुत अफ़सोस था उन्होंने अर्जुन सिंह को भी प्राण दंड दे दिया !

अमर सिंह की पत्नी हाड़ा रानी को जब उनकी मृत्यु का समाचार मिला तो वह इस बात से आशंकित हो गयी कि कहीं मुग़ल सैनिक अमर सिंह के पार्थिव शरीर का अपमान न करें ! तब वह वीर रानी अपने दो तीन विश्वस्त साथियों के नेतृत्व में किले में घुस कर अपने पति के शव को सुरक्षित उसी गेट से बाहर ले गयी जिसे आज सब अमर सिंह गेट के नाम से जानते हैं ! यमुना किनारे इसी स्थान पर हाड़ा रानी अपने पति के साथ सती हो गयी जहाँ आज यह जसवंत छतरी खड़ी हुई है ! अमर सिंह के छोटे भाई जसवंत सिंह अपने भाई और भाभी के पराक्रम से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उनके सम्मान में इस छतरी का निर्माण करवाया ! अमर सिंह की पत्नी के नाम के बारे में भी बड़ा मतभेद है ! कहीं उसका नाम हाड़ा रानी लिखा है, कहीं चन्द्रावती, कहीं हादा तो कहीं बल्लू चम्पावत ! नामों में एकरूपता का संयोग मात्र हो सकता है लेकिन यह वो हाड़ी रानी नहीं है जो सलुम्बर के राव रतन सिंह चूड़ावत की नई नवेली दुल्हन थी और जिसने युद्ध भूमि में जाने से हिचकिचाते अपने पति के पास अपनी कोई निशानी भेजने की माँग को पूरा करने के लिए अपना शीश ही काट कर भेज दिया था !

जसवंत छतरी अपने समय में बहुत ही भव्य और दर्शनीय रही होगी ! खंडहर कहते हैं कि ईमारत कितनी बुलंद थी ! यह काफी बड़े क्षेत्र में बनी हुई है ! पूरी ईमारत लाल पत्थर की बनी हुई है ! ऊँचे से चबूतरे पर एक बड़ा सा हॉल नुमा कक्ष है जिसमें ताला लगा हुआ था ! चाबी जिसके पास थी वह बन्दा नदारद था ! हॉल की चारों दीवारें बेहद खूबसूरत नाज़ुक जालियों से निर्मित हैं ! इसके निर्माण में हिन्दू व मुग़ल वास्तुकला का अद्भुत समन्वय है ! जहाँ खम्भों पर मंदिर की घंटियाँ, कमल के फूल, चक्र इत्यादि बहुत कुशलता से उकेरे गए हैं वहीं स्मारक की जालियाँ मुगलकालीन स्थापत्य की याद दिलाती हैं ! हमने जाली से अन्दर झाँक कर देखा तो वहाँ कुछ पूजा पाठ की सामग्री और बाँस बल्ली वगैरह रखे हुए दिखाई दिये ! चबूतरे के सामने एक गहरा सा चौकोर गड्ढा है ! हमारा अनुमान है उसी स्थान पर अमर सिंह एवं हाड़ा रानी का अंतिम संस्कार हुआ होगा ! अनुमान ही लगा सकते हैं ! बताने के लिए न कोई गाइड था न ही पुरातत्व विभाग का कोई बोर्ड ! अहाते के यमुना किनारे वाले दोनों कोनों पर बहुत ही सुन्दर छतरी बनी हुई हैं जिन पर आस पास रहने वाले फुरसती लोग ठंडी हवा का आनद लेने के लिए बैठे हुए थे ! ऊपर चढ़ कर गए तो इतनी गर्मी में भी ए सी जैसी शीतल बयार का सुख उठा लिया ! छतरी से यमुना नदी के दर्शन हो रहे थे जिसमें भैंसें नहाने का लुत्फ़ उठा रही थीं ! किनारे पर गन्दगी के अम्बार लगे हुए थे ! वह सब देख कर वितृष्णा तो अवश्य हुई लेकिन ठंडी हवा ने क्षोभ कुछ कम कर दिया ! सीढ़ियाँ ज़रूर बहुत ऊँची हैं ! सकरी भी हैं और उसमें रेलिंग भी नहीं है ! दर्शक अपनी सुरक्षा का ध्यान रख कर ही चढ़ने का जोखिम उठायें ! सीधे हाथ की तरफ एक छोटा सा मंदिर है और एक पुराना कुआँ भी है ! उस मंदिर में पूजा करने लोग आते रहते हैं ! कुछ स्त्रियाँ इस छतरी के आगे भी श्रद्धापूर्वक हाथ जोड़ रही थीं ! जसवंत छतरी के अहाते में चारों तरफ कभी सुन्दर बगीचा था और पानी के फव्वारे लगे हुए थे लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है ! इसमें कोई संदेह नहीं जब यह स्मारक अपने पूरे यौवन पर होगा तो इसकी खूबसूरती पर निगाहें ठहरती नहीं होंगी ! अगर इस स्मारक के आस पास इतनी घनी आबादी नहीं होती तो यह निश्चित रूप से आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र होता !

तो दोस्तों, आज आपको एक और खूबसूरत स्मारक का दीदार करवाया है मैंने ! दिल थाम के बैठिये ! अगला स्थल भी शानदार होगा जिसके बारे में आगरा में रहने वाले कलाप्रेमियों को ही कम जानकारी है तो भला बाहर वालों को कैसे होगी ! मेरा उद्देश्य यही है कि आप सब भी इन सुन्दर स्थानों को देखें और इनसे जुड़ी दिलचस्प कहानियों के बारे में भी जानें ! हम सब मिल कर आवाज़ उठाएंगे तो शायद पुरातत्व विभाग की नींद खुल जाए और ये स्मारक बदहाली का शिकार होने से बच जाएँ ! तो आज विदा दीजिये मुझे ! मिलते हैं दो चार दिनों में किसी और नयी जगह पर आपके साथ चलने के लिए !


नोट - इस स्मारक के बारे में अथवा आगरा के अन्य स्मारकों के बारे में तथ्यपरक जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें –

साधना वैद

 


2 comments :

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति |अच्छी जानकारी मिली है |

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !

      Delete