मुख्यमंत्री जी के बप्पा
जी की मूर्ति का
धूमधाम से अनावरण कराना
था
चौराहे पर मूर्ति को लगे हुए
बीत चुका लंबा ज़माना था
कभी सहयोगी बिदक जाते
तो कभी कोर्ट कचहरी के
केस
आड़े आ जाते
कोरोना का तो बस कमज़ोर सा
बहाना था !
जैसे तैसे इस बार मुहूर्त
निकला तो
लो फिर से आफतें आ गयीं
आधे विधायक दूसरी पार्टी
में चले गए
बाकी को अविश्वास
प्रस्ताव लाना था !
भाई की घूसखोरी ने कुर्सी
खींची
तो जनता के लबों पर
बेटे के कुकृत्यों का
फ़साना था !
बप्पा जी की मूर्ति सालों
से यूँ ही
घूँघट उठाये जाने की आस
में
चौराहे पर उदास खड़ी है !
न जाने वो कौन है कहाँ है
जिसे यह घूँघट उठाना था !
अब तो मन में भय और घबराहट
है
कहीं यह अनावरण की रस्म
स्थाई रूप से टल ही न जाए
कहीं मंत्री जी विश्वास
प्रस्ताव हार गए
तो फिर कौन सगा कौन
सौतेला
किस का कहाँ ठिकाना है !
हृदय में धुकधुकी लगी है
माथे पर चिंता की लकीरें
हैं
अनावरण के दिन गले में
क्या पहनाया जाएगा
फूलों और नोटों के हार
पहनाये जायेंगे
या फिर जूतों के हारों को
आना है !
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद प्रिय सखी यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteNice post
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआज जो हो रहा है उसका सजीव चित्रण ।
ReplyDeleteलेकिन यह सच बहुत कचोटता भी है संगीता ही ! हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका !
Deleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसजीव चित्रण
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार !
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