शेष जीवन
पंचतत्व विलीन
हो चुकी काया
श्राद्ध तर्पण
खिलाना ब्रह्मभोज
सब बेमानी
व्यर्थ रूढ़ियाँ
खर्चीला कर्मकांड
मात्र दिखावा
श्रद्धा मन में
आदर हृदय में
वही सत्य है
शेष असत्य
बचें आडम्बर से
धारें धर्म को
कर लो सेवा
जीते जी बुजुर्गों की
मिलेगा पुण्य
होंगे संतुष्ट
देंगे तुम्हें आशीष
सच्चे मन से
किसने देखा
क्या क्या किया तुमने
मरणोपरांत
सुख दो उन्हें
जीवित रहते ही
पा लो दुआएं
साधना वैद
सामयिक चिंतन को प्रेरित करती अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद दिनकर जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteसार्थक हाइकु
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआपका ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteभाव पूर्ण हाइकू |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteसमसामयिक रचना। जो पृत सेवा जीते जी कर ली,वही पुण्य है। किसी ने सत्य कहा है कि जीते जी जा नहीं सकता और मरा हुआ बता नहीं सकता.... फिर स्वर्ग नर्क की खोज किसने की?
ReplyDeleteसार्थक चिंतनपरक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद गोदियाल जी ! हार्दिक आभार आपका !
Deleteसार्थक रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संदीप जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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