जीना है अगर सम्मान से,
रखना है अपनी प्रतिष्ठा को
संसार में सर्वोच्च पायदान पर,
रखना है अगर कदम अपना
सफलता के शिखर पर,
और जो लहराना है
अपना परचम यश के फलक पर
तो खुद शक्ति बनो तुम
किसी अन्य की शक्तिपूजा से
फल नहीं मिलेगा तुम्हें ।
अपने मनमंदिर में
अपनी मूर्ति स्थापित करो,
उत्तम विचारों के शुद्ध जल से
स्नान करा उसे पावन बनाओ,
दृढ़ संकल्प शक्ति से
अभिमंत्रित कर
उसमें प्राणप्रतिष्ठा करो,
और फिर करो पूरी श्रद्धा
और विश्वास के साथ
स्वयं अपनी ही शक्तिपूजा ।
क्योंकि जो तुम्हारा अभीष्ट है
जो तुम्हारा लक्ष्य है
जो तुम्हारा साध्य है
उसके लिये साधन भी तुम्हीं हो
और साधक भी ।
इसलिये उठो और इस
अलौकिक अनुष्ठान के लिये
स्वयं को तैयार करो ।
साधना वैद
बहुत सुंदर कविता।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद तिवारी जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबढ़िया रचना है साधना जी।अपनी नजरों में उठकर ही नारी शिखरों को छू सकती है
ReplyDeleteसार्थक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से धन्यवाद रेणु जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteनवरात्रों के आगमन पर ढेरों शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें 😃🙏
ReplyDeleteआपको भी शारदीय नवरात्रों की अनंत शुभकामनाएं रेणु जी ! माँ की अनुकम्पा सब पर बनी रहे !
Deleteबहुत ही सुन्दर आह्वान, नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं दी 🙏
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteस्त्री विमर्श पर सुंदर रचना । शारदीय नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
ReplyDeleteहृदय से बहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteअपने लक्ष्य के लिए साधन भी तुम्हीं हो और साधक भी...
ReplyDeleteवाह !!!
बहुत ही लाजवाब ।
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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