चलो न चलें
कहीं तो चलें
इधर नहीं तो
उधर ही चलें
नीचे नहीं तो
ऊपर ही चलें
घाटी में नहीं
पहाड़ी पर चलें
तेज़ नहीं तो
धीरे ही चलें
गाड़ी नहीं तो
पैदल ही चलें
चलना ही है
तो अभी चलें
समय को बचाएं
और जल्दी चलें
थक जाएँ तो
ठहर कर चलें
गिर न जाएँ
सम्हल कर चलें
जीवन गति है
समझ कर चलें
रुकेंगे न हम
कसम ले चलें
मौत है रुकना
जान कर चलें
चलना है जीवन
रुकें न चलें
चलें और चलें
चलते ही चलें
साधना वैद
सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार !
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