जो काट दोगे
कहाँ फिर पाओगे
इतने फल
कैसे मिलेगी
इतनी प्राणवायु
इतना बल
काट के मुझे
बन जाएगा सोफा
या एक कुर्सी
जिन पे बैठ
कर लेना बातें या
मिजाजपुर्सी
पर न भूलो
घुट जायेगी साँस
जो पेड़ काटे
रोयेगी कुर्सी
धूल फाँकेगा सोफा
सहोगे घाटे
कृतघ्न प्राणी
हमने सिर्फ दिया
तुमने लिया
कभी न माँगा
उदारतापूर्वक
दिया ही दिया
और तुमने ?
हमें ही काट डाला
यह क्या किया ?
कितना क्रूर
हमारे सौहार्द्र का
बदला दिया ?
कैसे पाओगे
ताकत के प्रतीक
रसीले फल
शीतल हवा
जीने को प्राणवायु
सुखद पल
तपी धरती
झुलसता ब्रह्माण्ड
अब तो जागो
छोड़ो मूढ़ता
लगाओ हरे पेड़
इन्हें न काटो
हरे वृक्ष हैं
जीवन का आधार
यही सत्य है
इनकी सेवा
इनका संरक्षण
पुण्य कृत्य है !
साधना वैद
पेड़ प्रकृति का अमूल्य उपहार है जिसको मनुष्य अपने स्वार्थ की बलि चढ़ाने में क्षणभर भी नहीं सोचता ।
ReplyDeleteबेहद जरूरी चिंतन,सराहनीय अभिव्यक्ति।ःसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आलोक जी !
Deleteकाश ! हमको कभी तो अक्ल आए !
ReplyDeleteआयेगी ! कभी न कभी ज़रूर आयेगी गोपेश जी ! बस यही डर है कहीं बहुत देर न हो जाए !
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