वर्तमान में जैसी शिक्षा
प्रणाली चलन में है उसे हम किसी भी तरह से बालोपयोगी तो बिलकुल भी नहीं है ! इस
शिक्षा प्रणाली ने बच्चों से उनका बचपन और खुशी छीन ली है ! बच्चे मशीन की तरह इस
शिक्षा प्रणाली के जाल में उलझ कर रह गए हैं और सुबह से शाम तक किताबों का बोझ
उठाये शहर की सडकों पर दौड़ते भागते दिखाई देते हैं !
पहले साल में केवल तीन बार
परीक्षा लेने का चलन था ! तिमाही, छ:माही और वार्षिक
परीक्षाएं हुआ करती थीं ! इम्तहान के दिनों में छात्र मेहनत करके परीक्षा दे आते
थे और अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होकर अगली कक्षा में प्रवेश लेते थे ! पूरे साल
बच्चे खूब खुश रहते थे ! इनडोर, आउटडोर हर तरह के खूब खेल
खेलते थे और अपने बचपन के सखा सखियों के संग खूब आनंदमय वातावरण का लाभ भी उठाते
थे ! हर समय परीक्षा की तलवार सर पर लटकी हुई नहीं होती थी तो खूब बालोपयोगी पत्र
पत्रिकाओं और अपनी अवस्था के अनुसार साहित्यिक किताबों को भी पढ़ा करते थे ! हमने
भी अपने छात्र जीवन में अनेक उपन्यास और श्रेष्ठ कहानियाँ अदि पढ़ी हैं ! लेकिन अब
जो हर समय टेस्ट होते रहते हैं और इनके मार्क्स फाइनल रिज़ल्ट में जुड़ने का दबाव
बच्चों पर बनाया जाता है उसकी वजह से बच्चों को ज़रा भी समय नहीं मिल पाता है !
आजकल कोचिंग का भी प्रचलन
भी बहुत बढ़ गया है ! शिक्षा भी अब व्यापार बन चुकी है ! पहले वे ही थोड़े से बच्चे
ट्यूशन पढ़ते थे जो किसी एकाध विषय में कमज़ोर होते थे और कक्षा में बाकी बच्चों से
पढाई में पिछड़ जाते थे ! लेकिन अब तो बच्चा कितना भी होशियार हो ! कक्षा में भले
ही सबसे अधिक प्रतिभाशाली या टॉपर हो कोचिंग क्लासेज़ में तो उसे प्रवेश लेना ही
होगा क्योंकि इन दिनों यही चलन है ! माता पिता पर दोहरा भार पड़ जाता है ! एक तो
स्कूलों की फीस ही इतनी अधिक होती है कि सामान्य आमदनी के लोगों के पसीने छूट जाते
हैं उस पर कोचिंग कक्षाओं की फीस और देनी पड़ जाती है चाहे बच्चे को कोचिंग की
ज़रुरत हो या न हो ! कोचिंग कक्षाओं में बच्चों को भेजना आजकल फैशन की तरह हो गया
है ! सुबह के स्कूल गए हुए बच्चे थके हारे स्कूल से तीसरे पहर तक घर आते हैं ! ढंग
से खाना भी नहीं खा पाते कि कोचिंग क्लासेज़ का समय हो जाता है ! देर रात तक अगले
दिन के टेस्ट की तैयारी में जुटे रहते हैं ! अब परीक्षाओं में हाई स्कोर अंक लाने
का भी बहुत प्रेशर है बच्चों पर ! 90% अंक आने के बाद भी बच्चों को फूट-फूट कर
रोते हुए देखा है मैंने ! हमारे ज़माने में 50% से ऊपर अंक लाने वाले बच्चों को
बहुत होशियार समझा जाता था और 60% से ऊपर अंक लाकर प्रथम श्रेणी में पास होने वाले
बच्चे बहुत प्रतिभाशाली और मेधावी माने जाते थे !
आज की परीक्षा पद्धति ने
बच्चों की मुस्कराहट छीन ली है ! अधिकतर बच्चे अवसादग्रस्त रहने लगे हैं और
चिड़चिड़े व एकान्तप्रिय होते जा रहे हैं ! न वे परिवार के साथ अच्छा वक्त बिता पाते
हैं न दोस्तों के साथ खेल के मैदानों में और पार्क्स में दिखाई देते हैं ! इसका
मूल्य वे अपने स्वास्थ्य को दाँव पर लगा कर चुका रहे हैं ! अगर घर में जल्दबाजी
में ठीक से खाना नहीं खाया होता है तो वे शाम को कोचिंग क्लासेज़ के बाद अपनी मित्र
मंडली के साथ बाहर का हानिकारक जंक फ़ूड खाने की बुरी आदत की ओर प्रवृत्त हो रहे
हैं ! कोचिंग क्लासेस के आस-पास अनेकों खाने पीने के स्टॉल्स इन दिनों दिखाई देने
लगे हैं ! इसीका दुष्परिणाम है कि आजकल बहुत कम उम्र के युवाओं को हार्ट, शुगर, ब्लड प्रेशर आदि की समस्याएँ होने लगी हैं ! इसकी एक वजह
यह भी है कि इस उम्र में बच्चों को जो शारीरिक व्यायाम आदि करना चाहिए उसके लिए
उनके पास समय ही नहीं रहता ! शिक्षा प्रणाली और परीक्षाओं की रूपरेखा इस प्रकार की
होनी चाहिए कि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके न कि वे केवल किताबी कीड़ा ही बन
कर रह जाएँ ! देश के उज्जवल भविष्य के लिए और सर्वांगीण विकास के लिए आज के युवाओं
का स्वस्थ होना परम आवश्यक है ! कहते हैं स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग होता है
!
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
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