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Monday, February 28, 2011

मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर


जिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,
उम्र भी है चढ़ चुकी कई सीढ़ियाँ ,
रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,
जो बीता था, बीता है कभी !

जब हवाएं ठिठकती थीं द्वार पर ,
जब फुहारें भिगोती थीं आत्मा ,
जब सितारे चमकते थे नैन में ,
चाँद सूरज हाथ में थे जब सभी !

एक सूखा पात अटका है वहाँ ,
गुलमोहर के पेड़ की उस शाख पर ,
जो धधकता था सिंदूरी रंग में ,
अस्त होती सूर्य किरणों से कभी !

गीत अब भी गूँजता है अनसुना ,
भावना के पुष्प बिखरे हैं वहाँ ,
नेह की लौ जल रही है आज भी ,
जो बुझी थी, ना बुझेगी अब कभी !

थीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
मोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,
पलट कर तो देखते तुम भी कभी !


साधना वैद

26 comments :

  1. जिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,
    उम्र भी है चढ़ चुकी कई सीढ़ियाँ ,
    रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,
    जो न बीता था, न बीता है कभी !
    khadi hun aaj bhi wahin , jo waqt n bita tha n bitega kabhi

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  2. "जब फुहारें भिगोती थीं आत्मा-----
    चाँद सूरज साथ में थे जब सभी "
    सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति
    आशा

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  3. ापकी रचनायें हमेशा प्रभावित करती हैं। शुभकामनायें।

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  4. थीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
    मोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
    मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,
    पलट कर तो देखते तुम भी कभी !

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और मन को छू जाने वाले भाव..बहुत सुन्दर

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  5. थीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
    मोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
    मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,
    पलट कर तो देखते तुम भी कभी !

    पूरी की पूरी कविता ही सम्मोहित करनेवाली है...अति सुन्दर

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  6. अति सुंदर भावो से सजी आप की यह रचना, धन्यवाद

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  7. कविता में नायिका के समर्पण की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करती अमूल्य पंक्तिया..
    साधन जी आप के पुरे सम्मान के साथ आप से नहीं अपने आप से ये प्रश्न है की क्या कहीं ये भावनाएं हमारे आगे बढ़ने के रह में एक अवरोध का कार्य नहीं करती???
    समर्पण निःस्वार्थ होता है मगर मनुष्य अपनी प्रवृति से ही स्वार्थी होता है.. तो अक्सर ये प्रश्न स्वार्थी मन में आता है वो समर्पण किस काम का जिसकी अनुभूति करने मन उम्र बीत जाए...

    अदभुत शब्द चयन और भावात्मक कविता के लिए बधाइयाँ...


    आशुतोष .

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  8. माशा अल्लाह क्या खूब कविता कही है आपने.
    पहली लाइन से जो रवाना होती है,अंतिम लाइन पर जाकर रुकती है.
    बेमिसाल सम्मोहन .
    सलाम.

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  9. थीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
    मोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
    मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,
    पलट कर तो देखते तुम भी कभी
    bahut achcha likhi hain.

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  10. गीत अब भी गूँजता है अनसुना ,
    भावना के पुष्प बिखरे हैं वहाँ ,
    नेह की लौ जल रही है आज भी ,
    जो बुझी थी, ना बुझेगी अब कभी !

    बहुत भावमयी गीत ....
    मन की वेदना को कहता हुआ ..
    सुन्दर शब्द संयोजन !

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  11. थीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
    मोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
    मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,
    पलट कर तो देखते तुम भी कभी !
    aapki rachna bemisaal hoti hai ,bahut badhiyaa likhti hai aap ,sundar .baar baar padhi ....

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  12. नेह की लौ जल रही है आज भी ,
    जो बुझी थी, ना बुझेगी अब कभी !

    मोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
    मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर...
    बहुत ही सुंदर, भावना से भरी , प्रभावित करती रचना ! शुभकामनाएँ !

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  13. जिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,
    उम्र भी है चढ़ चुकी कई सीढ़ियाँ ,
    रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,
    जो न बीता था, न बीता है कभी !

    बेहतरीन भाव, यादों के जाल में उलझी सुंदर कविता.

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  14. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

    नीरज

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  15. जिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,
    उम्र भी है चढ़ चुकी कई सीढ़ियाँ ,
    रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,
    जो न बीता था, न बीता है कभी !

    कुछ लम्हे रूह की दहलीज़ पर ही रुके रहते हैं कभी ना बीतने के लिये……………बेहतरीन भाव समन्वय्।

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  16. जिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,

    उम्र भी है चढ़ चुकी कई सीढ़ियाँ ,

    रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,

    जो न बीता था, न बीता है कभी

    बहुत खूबसूरत अहसास को पिरोया है आपने... सचमुच पलकों पर थमे पल... जीवन की पूंजी होते हैं

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  17. उम्र के फासले तय करता जिस्म मगर रूह वही अटकी रह जाती है ...इस उम्मीद में की कही पलटकर देख ले कोई ...
    सदियों की प्रतीक्षा को सुन्दर शब्द मिले...
    बेहतरीन भाव !

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  18. बहुत खूबसूरत भावों से आपने अपनी रचना को घड़ा है .... आभार

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  19. हम खड़े हैं आज भी उस मोड़ पर.. कि जहाँ उसने कहा था 'ठहरो अभी आते हैं हम..'
    चर्चामंच से होते हुए आज आप तक पहुँचने का सौभाग्य हुआ.. मन गदगद हो उठा आपको पढ़कर.. निस्संदेह बहुत कुछ सीखने को मिला है आपको पढ़ने की बाद.. और आगे भी मिलता रहेगा.. यही आशा है..

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  20. ये बीते हुए लम्हों की कसक है

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  21. जिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,
    उम्र भी है चढ़ चुकी कई सीढ़ियाँ ,
    रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,
    जो न बीता था, न बीता है कभी !

    bahut khubsurat rachna dil ko chu gai

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  22. एक सूखा पात अटका है वहाँ ,
    गुलमोहर के पेड़ की उस शाख पर ,
    जो धधकता था सिंदूरी रंग में ,
    अस्त होती सूर्य किरणों से कभी !

    बहुत सुन्दर रचना ...एक एक शब्द मन में उतरता हुआ ...

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  23. स्मिताMarch 6, 2011 at 3:07 PM

    मन बंधन रहित होता है | रस से सराबोर रचना|

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  24. नेह की लौ जल रही है आज भी ,
    जो बुझी थी, ना बुझेगी अब कभी !

    थीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
    मोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
    मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,

    man ke rishte aise hi hote hain...puri zindgi...ek lau me jalte hue.....mrigtrishna liye hue.

    sunder abhivyakti.

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  25. "गीत अब भी गूँजता है अनसुना ,
    भावना के पुष्प बिखरे हैं वहाँ ,
    नेह की लौ जल रही है आज भी ,
    जो बुझी थी, ना बुझेगी अब कभी"

    "दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ दिया..
    दुनिया की आँधियों से भला ये बुझेगा क्या..!!"

    एक स्नेह्पूरित मन के भाव.....
    जो मिटाए नहीं मिटते...

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