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Tuesday, July 2, 2013

रणथम्भोर नेशनल पार्क – टाइगर सफारी के सुखद संस्मरण





२२ जून की सुबह आगरा कैंट स्टेशन से जब कोटा पटना एक्सप्रेस में सवाईमाधोपुर के लिये सवार हुए तो ट्रेन लगभग एक घंटे लेट चल रही थी ! रणथम्भोर जल्दी पहुँचने की उत्सुकता थी ! वहाँ के नॅशनल पार्क के टाइगर्स और अन्य वन्य जीवों को साक्षात देखने की उत्कण्ठा चरम पर थी ! ट्रेन के लेट चलने से यही फ़िक्र हो रही थी कि कहीं दोपहर की तीन बजे की सफारी भी छूट न जाये ! लेकिन हमारा सौभाग्य रहा कि हम लोग साढ़े बारह बजे तक सवाई माधोपुर पहुँच गये ! हमारे होटल रणथम्भोर रीजेंसी से हमें स्टेशन पर रिसीव करने के लिये होटल की गाड़ी और ड्राइवर पहले से ही मौजूद थे !
होटल पहुँचने के बाद सबसे पहले फ्रेश होकर और कुछ हल्का फुल्का खाना खाकर हम लोग दोपहर की सफारी के लिये तैयार हो गये ! नेशनल पार्क ले जाने के लिये ठीक तीन बजे गाड़ी हमारे गाइड मिस्टर फारूख के साथ होटल के गेट पर हमारी प्रतीक्षा कर रही थी ! रणथम्भोर की हमारी यह पहली यात्रा थी ! अरावली पर्वत श्रंखला के एक छोर पर स्थित यह एक बहुत ही मनोरम एवँ दर्शनीय स्थल है ! इस वर्ष मानसून यहाँ कुछ पहले ही मेहरबान हो गया जिसकी वजह से चहुँ ओर स्थित पहाड़ियाँ और खेत खूब हरे भरे हो गये थे ! हालाँकि गर्मी अपने चरम पर थी लेकिन आस पास के दृश्य इतने मनभावन थे कि गाड़ी कब पार्क के गेट पर पहुँच गयी पता ही नहीं चला ! रणथम्भोर पार्क में प्रवेश करते ही पूरे पंख फैला कर मगन हो नाचते हुए मोरों ने हमारा स्वागत किया ! पार्क में तीन झीलें हैं जिनके आस-पास ढेर सारे हिरन, सांभर, चीतल, मोर इत्यादि विचरण करते हुए दिखाई दे जाते हैं ! झीलों में बड़े-बड़े मगरमच्छ भी हैं ! पार्क मे ढोक के वृक्ष बहुतायत में हैं जिनकी नाज़ुक नर्म धानी पत्तियाँ नयनों को बहुत सुख पहुँचा रही थीं ! पार्क के ट्रैक्स सबसे अधिक रोमांचक थे ! पतले-पतले, सँकरे, ऊबड़ खाबड़, चट्टानी ट्रैक्स पर जब जीप फुल स्पीड में दौड़ती थी तो रोमांच से आँखें खु ब खुद मुँद जाती थीं ! पथरीले ट्रैक्स पर अचानक ही कभी गहरी ढलान तो कभी खड़ी चढ़ाई आ जाती थी यदि सम्हल कर कोई ना बैठा हो तो नीचे ही गिर जाये ! यहाँ के ड्राइवर्स बहुत ही अनुभवी व दक्ष हैं और बड़ी कुशलता से ऐसे रास्तों पर गाडियाँ दौड़ाते रहते हैं ! सभी आने जाने वाली गाड़ियों से सूचनायें भी साझा करते रहते हैं कि किस ट्रैक पर टाइगर की साइटिंग हो रही है ! गाड़ी में बैठे पर्यटकों की टाइगर से भेंट किसी भी तरह हो ही जाये उसके लिये वे पूरी ईमानदारी से प्रयत्नशील रहते हैं ! सभी गाइड्स के पास वॉकी टॉकी होता है जिससे वे कोई भी सूचना तुरंत अपने साथियों को दे सकते हैं !
पहले दिन पार्क के विभिन्न स्थानों पर घूमते-घूमते हमने अनेकों जंगली जानवर देखे ! हिरन, साम्भर, चीतल, मोनिटर लिज़र्ड, जंगली सूअर, अनेकों तरह के पक्षी लेकिन वनराज हमें दर्शन देने के लिये शायद तैयार नहीं थे ! लौटने का वक्त हो चला था ! हम कुछ सुस्त हो चले थे कि अब टाइगर के दर्शन शायद आज नहीं हो पायेंगे ! लेकिन हमारे गाइड मिस्टर फारूख हमें पार्क में एक बिलकुल निर्जन स्थान पर ले गये और गाड़ी खड़ी कर इत्मीनान से अपने अनुभवों से हमें परिचित कराने में लग गये कि अचानक से टी २६, (टाइगर का नंबर), के आसपास होने की आहट मिली ! वह कहाँ से दिखाई देगा इस बात का इन लोगों को बड़ा सही अनुमान होता है ! हम लोगों से मिलने के लिये वनराज उबटन लगा कर मल-मल कर टब बाथ लेकर बाहर निकले थे ! (मजाक की बात है) ! दरअसल वह कीचड़ के पौण्ड में घन्टों लेट कर पूरी तरह से अपनी गर्मी शांत करने के बाद उठ कर आया था ! कमर से नीचे का हिस्सा पूरा कीचड़ से लथपथ हो रहा था ! लेकिन उसका चेहरा उतना ही भव्य और आकर्षक था और चाल उतनी ही मस्तानी और कमनीय ! सूचना पाते ही कई गाड़ियाँ आस-पास आ गयी ! लेकिन टी २६ निस्पृह भाव से सबको दर्शन देते हुए बड़ी दूर तक गाड़ियों के साथ-साथ ट्रैक पर कैट वाक करता रहा और फिर घने वृक्षों के बीच वन की गहराई में कहीं अदृश्य हो गया ! पहली ही सफारी के अंत में टाइगर की इतनी बढ़िया साइटिंग बहुत ही रोमांचक और संतोषप्रद थी !
दूसरे दिन हमारे गाइड मिस्टर सलीम थे ! ये टाइगर साइटिंग के गाइड के रूप में नंबर वन माने जाते हैं और विदेशी प्रोड्यूसर्स के साथ कई फिल्मों में काम भी कर चुके हैं ! ‘द ब्रोकन टेल’ उनकी सबसे चर्चित फिल्म है जो रणथम्भोर के ही एक टाइगर के जीवन पर आधारित है ! दूसरे दिन भी पार्क के वन प्रदेश में प्रवेश करने से काफी पहले ही सड़क के किनारे घास के मैदान में एक टाइगर आराम से लेटा हुआ दिखाई दिया ! बड़ी देर तक वह वहीं लेटा रहा उसके बाद उठ कर जंगल में घुस गया ! उसके बाद मंडूप एरिया में नाले के पास टहलते हुए दो टाइगर्स को देखा ! वे कुछ दूरी पर थे ! लेकिन एक टाइगर बाद में ट्रैक के बिलकुल पास एक पौण्ड में पानी पीने के लिये आया और फिर वहीं लेट गया ! वह उस दिन इस कदर आराम के मूड में था कि शाम की सफारी में भी उसी जगह पर उसी तरह आराम करता हुआ मिला ! उसे देखने के लिये वहाँ बहुत भीड़ जमा हो गयी और इतना शोर होने लगा कि टाइगर का मूड कुछ खराब हो गया ! हर गाड़ी में हर व्यक्ति के पास कैमरे थे और लोग दनादन उसकी तस्वीरें खींचने में लगे थे ! शायद इसी वजह से वह चिढ़ गया ! करीब से टाइगर को देखने की होड़ में सब ज़ोर-ज़ोर से गाड़ी आगे बढ़ाने के लिये शोर मचा रहे थे ! चिढ़ कर शेर ट्रैक पर आ गया ! संयोग से शेर के सबसे पास हमारी ही गाड़ी थी ! कुछ दूर तक मंथर गति से चलने के बाद उसने एकदम से अपनी स्पीड बढ़ाई ! सलीम ने ड्राइवर को गाड़ी दौड़ाने का आदेश दिया ! ड्राइवर शादाब भी बहुत अनुभवी था ! शेर के हाव-भाव से उसे समझ में आ गया था कि वह चार्ज भी कर सकता है ! उसने पहले से ही गाड़ी को चौथे गीयर पर डाला हुआ था ! थोड़ी दूर तक गाड़ी के पीछे दौड़ कर टाइगर जंगल में झाड़ियों के पीछे गुम हो गया ! इस अंदाज़ में शेर से मिलना भी बहुत ही रोमांचक था !
शाम को पार्क के सुदूर वन प्रान्तों की भी खूब सैर की ! ढोक के वृक्षों के घने जंगल से गुजरना बहुत सुखद अनुभव था ! ट्रैक के ऊपर दोनों तरफ के घने वृक्ष इस तरह से गुंथे हुए थे कि आसमान दिखाई नहीं दे रहा था ! मौसम इतना सुहावना था कि हर दस कदम पर मोर मोरनी पूरे पंख फैला कर नाचते हुए दिखाई दे रहे थे ! पार्क के विशाल बरगद के पेड़ का वेलकम गेट भी देखा ! यह कोलकता के बोटेनिकल गार्डन के पेड़ के बाद दूसरा सबसे बड़ा बरगद का पेड़ है जिसकी जड़ें और शाखाएं दूर-दूर तक फ़ैली हुई हैं !
सफारी से लौट कर स्वीमिंग पूल में थोड़ा वक्त बिता कर सारी थकान गायब हो गयी ! रणथम्भोर रीजेंसी की मसाला चाय लाजवाब होती है ! पूल साइड पर ही चाय की वेंडिंग मशीन रखी होती है ! रात को हल्का खाना खाकर सब जल्दी ही सो गये ! सुबह पार्क ले जाने के लिये ठीक छ:बजे गाड़ी होटल पहुँच जाती है ! यह अंतिम दिन था ! और चौबीस तारीख की आख़िरी दो सफारी बची थीं ! उस दिन सुबह की सफारी में टाइगर के पग मार्क देखते हुए बड़ी दूर तक उसकी तलाश में जंगल में गहरे घुसते चले गये ! गाइड मिस्टर सलीम और ड्राइवर की अनुभवी आँखों के कायल होने का भी मौक़ा मिला ! पतले-पतले पथरीले रास्तों पर भी उन्हें टाइगर के पदचिन्ह आसानी से दिखाई दे जाते थे ! जाने और लौटने के दोनों ही पद चिन्हों को देख कर उन्हें अनुमान हो गया था कि टाइगर इस वक्त कहाँ गया होगा और कितनी देर बाद पानी पीने के लिये किस जगह पर आएगा ! रास्ते में ट्रैक के बिलकुल पास एक जंगली खरगोश को निगलते हुए एक विशाल अजगर को भी देखा ! उसका पेट खूब फूला हुआ था और वह आराम से लेता हुआ था ! यह दृश्य भी विरला ही था ! सलीम जी के अनुमान के अनुसार जैसे ही हम लोग उस रोड साइड वाले पानी के गड्ढे के पास पहुँचे टाइगर जंगल के अंदर से मंद मंथर गति बाहर आता हुआ दिखा ! यह टी २४ था ! ट्रैक पर सिर्फ दो ही गाडियाँ थीं ! हम सबको देखते हुए वह इत्मीनान से गड्ढे के पास आकर बैठ गया ! काफी देर तक रुक-रुक कर उसने खूब सारा पानी पिया ! लगभग आधे घंटे तक वनराज अपनी भिन्न-भिन्न आकर्षक भंगिमाओं से हमें लुभाते रहे ! इस बार की साइटिंग सबसे बढ़िया हुई थी और हम लोगों ने खूब फोटोज भी खींचे !
शाम की सफारी में भी टी २४ के दर्शन हुए ! यह अंतिम सफारी थी ! वह ट्रैक के बिलकुल पास एक झाडी के साये में बच्चों की तरह बेसुध सो रहा था ! हमारी गाड़ी आवाज़ से उसकी नींद खुल गयी थी ! लेकिन फिर भी वह बार-बार जम्हाई लेकर और करवट बदल कर सोने की कोशिश कर रहा था ! उसके पास पहुँचने वाली पहली गाड़ी हमारी ही थी ! जैसे-जैसे और गाड़ियाँ पास आती गयीं और शोर बढ़ने लगा वह एक लंबी अंगड़ाई लेकर उठा और अंदर जंगल में चला गया !
ये जंगली जानवर भी कितने समझदार होते हैं ! अकारण कभी किसीको हानि नहीं पहुँचाते ! क्या हम इंसान इनसे इतना सा सन्देश भी ग्रहण नहीं कर सकते कि हमें भी अपने संसार में सबके साथ इसी तरह सामंजस्य व समन्वय स्थापित कर रहना चाहिये ! जब ऐसा होगा तब ही यह समाज रहने लायक हो पायेगा !
रणथम्भोर नेशनल पार्क की यह यात्रा अविस्मरणीय रहेगी ! रात को नौ बजे की ट्रेन से हमारे वापिसी के टिकिट्स बुक थे ! कैमरे में कैद तस्वीरें शायद कालान्तर में नष्ट हो जाएँ लेकिन मन पर जैसी अद्भुत तस्वीरें अंकित हो गयी हैं उनका मिटना असंभव है !
  
साधना वैद
Posted by Picasa

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