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Wednesday, December 7, 2016

शिक्षा और श्रम




जीवन यापन के लिए करना है उद्योग

लेकन समुचित काम का बना नहीं संयोग !



ऑफिस-ऑफिस फिर रहे बैग हाथ में थाम

व्यर्थ हुईं सब डिग्रियाँ मिला न कोई काम !



रद्दी का हैं ढेर सब कहीं न इनका मोल

सुनने को मिलते रहे सबके कड़वे बोल !



कब तक हम भटका करें नाकारा बेकार

नैया कर दो पार अब जग के पालन हार !



बीत रहा जीवन फिसल ज्यों हाथों से रेत

संभल न जाते हम तभी जो आ जाती चेत !



इससे तो हम सीखते हाथों का कुछ काम

‘बेकारों’ की लिस्ट से हट तो जाता नाम !



मिहनत करने से भला क्यों कतराते लोग

कुर्सी पर बैठे रहे लगा लिए सौ रोग !



बेशक करते रात दिन हाड़ तोड़ कर काम

‘बेकारी’ के दंश से बच जाते श्रीमान  !



श्रमिकों की महिमा बड़ी श्रम का जग में मान  

हुनरमंद इंसान का होता जग में गान !



श्रम बिन शिक्षा व्यर्थ है जब होगा यह ज्ञान

इनके समुचित मेल से पाओगे सम्मान !







साधना वैद




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