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Friday, February 17, 2017

किस्मत



इस दुनिया में बात एक ही
मुझको सच्ची लगती है
अपनी सबसे बुरी ग़ैर की
किस्मत अच्छी लगती है !
'किस्मत' की किस्मत को अब तक
कोई बदल न पाया
अपने दुःख का कारण सबने
किस्मत को ही पाया !
देखो उसकी किस्मत कैसे
चमक उठे हैं तारे
फूटी मेरी किस्मत पीछे
पड़े हुए दुःख सारे !
मैं किस्मत का मारा मेरी
कौन करे सुनवाई
फिरता दर दर मारा मैंने
पग पग ठोकर खाई !
इसकी उसकी सबकी किस्मत
क्यों ऊपर चढ़ जाती
मेरी ही किस्मत की रेखा
क्यों अक्सर मिट जाती !
इंद्रजाल किस्मत का कैसा
क्या खेला है सारा
समझ न पाऊँ लीला तेरी
डूबा हुआ सितारा !
वो छू ले जो मिट्टी तो
वो भी सोना बन जाती
मैं ही हूँ किस्मत का हेठी
बात नहीं बन पाती !
लोगों की सुन ऐसी बातें
'किस्मत' सिर धुनती है
अपनी ही किस्मत पर खुल कर
खूब हँसा करती है  !


साधना वैद






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