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Wednesday, September 27, 2017

मैं ग़रीब हो गया



मेरे मौला
तूने तो मालामाल किया था मुझे
प्यार की दौलत से
मोहब्बत की दौलत से
इल्म और इखलाक की दौलत से
इंसानियत की दौलत से  
मैंने ही कभी कद्र न की उसकी
मुफ्त जो मिल गयी थी
भागता रहा काग़ज़ की दौलत के पीछे
सिक्कों की खनखनाहट के पीछे
कितने जतन किये उसे पाने के लिए
कितनी कड़ी मेहनत की
कितने सारे इम्तहान दिए
मेहनत रंग लाई तो
कुछ कमाया भी ज़रूर
लेकिन इस कमाई की जद्दोजहद में
बहुत कुछ गँवा भी दिया
वह अनमोल दौलत जिससे तूने मुझे
भर हाथों नवाज़ा था
मेरे हाथ से फिसल गयी !
इंसानियत की दौलत
स्नेह और सौहार्द्र की दौलत
प्रेम और संवेदनशीलता की दौलत
मानवीयता की दौलत  
और मैं बन गया 
एक खुरदुरा इंसान
नितांत स्वार्थी, संकीर्ण, 
आत्म केन्द्रित और अहंकारी इंसान
जिसे सिर्फ खुद से प्यार करना आया
जिसका दिल जिसकी आत्मा
कभी किसीके भी दुःख से
ज़रा भी नहीं पसीजते  
कड़वे शब्द जिसके मुख से
झरने की तरह बहते हैं
मैं बन कर रह गया
सिर्फ और सिर्फ 
एक खोखला इंसान
जिसका कोई मोल नहीं
कोई इज्ज़त नहीं
और इतने बड़े संसार में
शायद जिसकी 
    कोई ज़रुरत भी नहीं !    
मेरे मौला
मैं ग़रीब हो गया !


साधना वैद  


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