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Wednesday, March 21, 2018

आक्रोश

आक्रोश





क्यों भला आया है मुझको पूजने
है नहीं स्वीकार यह पूजा तेरी ,
मैं स्वयं चल कर तेरे घर आई थी
क्यों नहीं की अर्चना तूने मेरी ?

आगमन की सूचना सुन कर तेरे
भाल पर क्यों अनगिनत थे बल पड़े ,
रोकने को रास्ता मेरा भला
किसलिए तब राह में थे सब खड़े ?

प्राण मेरे हरण करने के लिए 
किस तरह तूने किए सौ-सौ जतन ,
अब भला किस कामना की आस में
कर रहा सौ बार झुक-झुक कर नमन !

देख तुझको यों अँधेरों में घिरा
रोशनी बन तम मिटाने आई थी ,
तू नहीं इस योग्य वर पाए मेरा ,
मैं तेरा जीवन बनाने आई थी !

मैं तेरे उपवन में हर्षोल्लास का
एक नव पौधा लगाने आई थी ,
नोंच कर फेंका उसे तूने अधम
मैं तेरा दुःख दूर करने आई थी !

मार डाला एक जीवित देवी को
पूजते हो पत्थरों की मूर्ति ,
किसलिए यह ढोंग पूजा पाठ का
चाहते निज स्वार्थों की पूर्ति !

है नहीं जिनके हृदय माया दया
क्षमा उनको मैं कभी करती नहीं ,
और अपने हर अमानुष कृत्य का 
दण्ड भी मिल जाएगा उनको यहीं !


साधना वैद

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