जिसे अपने वजूद को संसार में लाने के लिये जीने से पहले ही हर साँस के लिये संघर्ष करना पड़े ! जिसे बचपन अपने माता पिता और बड़े भाइयों के कठोर अनुशासन और प्रतिबंधों में और विवाह के बाद ससुराल में पति की अर्धांगिनी या सहचरी बन कर नहीं वरन सारे परिवार की दासी और सेविका बन कर जीने के लिये विवश होना पड़े ! जिसकी इच्छाओं और सपनों का कोई मोल ना समझा जाए ! उस नारी के विमर्श की व्यथा कथा इस पुस्तक की कहानियों में आपको मिलेगी ! वह नारी ज़िंदा ज़रूर है, साँस भी ले रही है लेकिन हर पल ना जाने कितनी मौतें मरती है !
जीवनपर्यंत नारी को संघर्ष ही तो करना पड़ता है ! सबसे पहले जन्म लेने के लिये संघर्ष ! अगर समझदार दर्दमंद और दयालु माता पिता मिल गये तो इस संसार में आँखें खोलने का सौभाग्य उसे मिल जाएगा वरना जिस कोख को भगवान ने उसे जीवन देने के लिये चुना वही कोख उसके लिये कब्रगाह भी बन सकती है ! फिर अगर जन्म ले भी लिया तो लड़की होने की वजह से घर में बचपन से ही उसके साथ होने वाले भेदभाव से संघर्ष !
क्या कारण है कि तमाम सरकारी नीतियों, सुविधाओं, छात्र वृत्तियों और 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसे सशक्त नारों के बावजूद भी समाज का एक वर्ग लड़कियों की शिक्षा के प्रति आज भी उदासीन है ! कहीं आर्थिक कारण आड़े आ जाते हैं तो कहीं रूढ़िवादी सोच, कहीं असुरक्षा का वातावरण बाधा बन जाता है तो कहीं शिक्षा विभाग की लचर व्यवस्था इन्हें पीछे खींच लेती है ! इनकी पड़ताल भी आपको इन कहानियों में मिलेगी !
नारी इन सभी अन्यायों को सदियों से झेलती आ रही है और सभी प्रतिकूल परिस्थितियों में कठिन संघर्ष करते हुए वह खामोशी से स्वयं को सिद्ध करने में लगी हुई है ! कब उसे अपनी इस अनवरत साधना का फल मिलेगा, कब वह अपने अस्तित्व को स्थापित कर पायेगी, कब उसकी उपलब्धियों का निष्पक्ष आकलन होगा यह देखना बाकी है ! आईये आप भी इस विमर्श का हिस्सा बन जाइए और अपनी ओर से कुछ सार्थक जोड़ कर नारी के इस विमर्श को पूर्ण विराम देने में सहयोगी बन जाइये !
जीवनपर्यंत नारी को संघर्ष ही तो करना पड़ता है ! सबसे पहले जन्म लेने के लिये संघर्ष ! अगर समझदार दर्दमंद और दयालु माता पिता मिल गये तो इस संसार में आँखें खोलने का सौभाग्य उसे मिल जाएगा वरना जिस कोख को भगवान ने उसे जीवन देने के लिये चुना वही कोख उसके लिये कब्रगाह भी बन सकती है ! फिर अगर जन्म ले भी लिया तो लड़की होने की वजह से घर में बचपन से ही उसके साथ होने वाले भेदभाव से संघर्ष !
क्या कारण है कि तमाम सरकारी नीतियों, सुविधाओं, छात्र वृत्तियों और 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसे सशक्त नारों के बावजूद भी समाज का एक वर्ग लड़कियों की शिक्षा के प्रति आज भी उदासीन है ! कहीं आर्थिक कारण आड़े आ जाते हैं तो कहीं रूढ़िवादी सोच, कहीं असुरक्षा का वातावरण बाधा बन जाता है तो कहीं शिक्षा विभाग की लचर व्यवस्था इन्हें पीछे खींच लेती है ! इनकी पड़ताल भी आपको इन कहानियों में मिलेगी !
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साधना वैद
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आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
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