आओ तुमको मैं दिखाऊँ
मुट्ठियों में बंद कुछ
लम्हे सुनहरे,
और पढ़ लो
वक्त के जर्जर सफों
पर
धुंध में लिपटे हुए
क़िस्से अधूरे !
आओ तुमको मैं सुनाऊँ
दर्द में डूबे हुए नग़मात
कुछ भूले हुए से,
और कुछ बेनाम रिश्ते
वर्जना की वेदियों
पर
सर पटक कर आप ही
निष्प्राण हो
टूटे हुए से !
और मैं प्रेतात्मा
सी
भटकती हूँ
उम्र के वीरान से इस
खंडहर में
कौन जाने कौन सी
उलझन में खोई,
देखती रहती हूँ
उसकी राह
जिसकी दृष्टि में
पाई नहीं
पहचान कोई !
बन चुकी हूँ इक शिला
मैं झेल कर
संताप इस निर्मम
जगत के,
और बेसुध सी कहीं
सोई पड़ी हूँ
वंचना की गोद में
धर कर सभी
अवसाद उस बेकल
विगत के !
देख लो इक बार
जो यह भग्न मंदिर
और इसमें प्रतिष्ठित
यह भग्न प्रतिमा
मुक्ति का वरदान
पाकर
छूट जाउँगी सकल
इन बंधनों से,
राम तुम बन जाओगे
छूकर मुझे
और मुक्त हो जायेगी
इक
शापित अहिल्या
छू लिया तुमने उसे
जो प्यार से निज
मृदुल कर से !
साधना वैद
व्वाहहहह..
ReplyDeleteबेहतरीन..
सादर नमन..
बेहतरीन सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार भाई दिग्विजय जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ऋतुु जी !
ReplyDeleteसुप्रभात
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |सुन्दर प्रस्तुति |
हार्दिक धन्यवाद जीजी !
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " गुरूवार 22 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteधुंध में लिपटे हुए
ReplyDeleteक़िस्से अधूरे !
hmmmmmmmm..... nishabd kr diyaa in 6 lafzon ne mujhe....
bahut bahut dhanywaad...aisaa likhne ke liye....
बेहतरीन सुन्दर प्रस्तुति
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२६ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
दर्द में डूबे हुए नग़मात
ReplyDeleteकुछ भूले हुए से,
और कुछ बेनाम रिश्ते
वर्जना की वेदियों पर
सर पटक कर आप ही
निष्प्राण हो
टूटे हुए से !
और मैं प्रेतात्मा सी
भटकती हूँ
उम्र के वीरान से इस
खंडहर में
वाह!!!
लाजवाब हमेशा की तरह लाजवाब सृजन
हार्दिक धन्यवाद ज़ोया जी! आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद पूरन मल मीणा जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभारी हूँ !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! धन्यवाद ज्ञापन में विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ! एक सप्ताह के लिए ताशकंद की यात्रा पर बाहर थी !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! रचना आपको अच्छी लगी मन मेरा मुदित हुआ!
ReplyDeleteभटकती हूँ
ReplyDeleteउम्र के वीरान से इस
खंडहर में
वाह.....लाजवाब
हार्दिक धन्यवाद संजय आपका !
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