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Friday, July 17, 2020

मैं धरा हूँ


मैं धरा हूँ
रात्रि के गहन तिमिर के बाद
भोर की बेला में
जब तुम्हारे उदित होने का समय आता है
मैं बहुत आल्हादित उल्लसित हो
तुम्हारे शुभागमन के लिए
पलक पाँवड़े बिछा
अपने रोम रोम में निबद्ध अंकुरों को
कुसुमित पल्लवित कर
तुम्हारा स्वागत करती हूँ !
तुम्हारे बाल रूप को अपनी
धानी चूनर में लपेट
तुम्हारे उजले ओजस्वी मुख को
अपनी हथेलियों में समेट
बार बार चूमती हूँ और तुम्हें
फलने फूलने का आशीर्वाद देती हूँ !
लेकिन तुम मेरे प्यार और आशीर्वाद
की अवहेलना कर
अपने शौर्य और शक्ति के मद में चूर
गर्वोन्नत हो
मुझे ही जला कर भस्म करने में
कोई कसर नहीं छोड़ते !
दिन चढ़ने के साथ-साथ
तुम्हारा यह रूप
और प्रखर, और प्रचंड,
रौद्र और विप्लवकारी होता जाता है !
लेकिन एक समय के बाद
जैसे हर मदांध आतातायी का
अवसान होता है !
संध्या के आगमन की दस्तक के साथ
तुम्हारा भी यह
रौरवकारी आक्रामक रूप
अवसान की ओर उन्मुख होने लगता है
और तुम थके हारे निस्तेज
विवर्ण मुख
पुन: मेरे आँचल में अपना आश्रय
ढूँढने लगते हो !
मैं धरा हूँ !
संसार के न जाने कितने कल्मष को
जन्म जन्मांतर से निर्विकार हो
मैं अपने अंतर में
समेटती आ रही हूँ !
आज तुम्हारा भी क्षोभ
और पश्चाताप से आरक्त मुख देख
मैं स्वयं को रोक नहीं पा रही हूँ !
आ जाओ मेरी गोद में
मैंने तुम्हें क्षमा किया
क्योंकि मैं धरा हूँ !




साधना वैद

14 comments :

  1. बहुत सुन्दर।
    धरा की सहनशीलता तो होती ही असीमित है।

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    1. हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. बहुत सुन्दर भाव लिए कविता |धरा तो बहुत सहनशील होती ही है |

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! आभार आपका !

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (20-07-2020) को 'नजर रखा करो लिखे पर' ( चर्चा अंक 3768) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

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  4. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  5. हार्दिक धन्यवाद नवीन जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  6. खूबसूरत पंक्तियाँ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद तिवारी जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  7. और पश्चाताप से आरक्त मुख देख
    मैं स्वयं को रोक नहीं पा रही हूँ !
    आ जाओ मेरी गोद में
    मैंने तुम्हें क्षमा किया
    क्योंकि मैं धरा हूँ !
    वाह

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    1. हार्दिक धनुवाद महोदय ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  8. क्षमा ही धरा की विशेषता है
    बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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