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Friday, September 18, 2020

प्रेम


 

निश्छल आँसू प्रेम के, अंतस के उच्छवास !
अनुपम यह उपहार है, ले लो आकर पास ! 

दीपशिखा सी जल रही, प्रियतम मैं दिन रात !
पंथ दिखाने को तुम्हें, पिघलाती निज गात ! 

दर्शन आतुर नैन हैं, कब आओगे नाथ !
तारे भी छिपने लगे, होने को है प्रात ! 

नैन निगोड़े नासमझ, नित्य निहारें बाट !
ना आयेंगे प्राणधन, तज दुनिया के ठाट ! 

पवन पियाला प्रेम का, पी-पी पागल होय !
सारा जग सुरभित करे, स्वयम सुवासित होय ! 

गलियन-गलियन घूमती, गंध गमक गुन गाय !
प्रभु चरणों में वास है, क्यूँ न फिरूँ इतराय !  

अंतस आलोकित किया, दिखलाने को राह !
आ बैठो इस ठौर तुम, नहीं और कुछ चाह ! 

मनमंदिर में नेह की, जला रखी है ज्योत !
प्रियतम पथ भूलें नहीं, मिले न दूजा स्त्रोत ! 


साधना वैद
 

16 comments :

  1. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !

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  2. हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! आपका बहुत बहुत आभार ! सप्रेम वन्दे !

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  3. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद सुजाता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. सुन्दर भाव लिए रचना |

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !

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  5. Replies
    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी ! आभार आपका !

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  6. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सादर वन्दे !

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  7. बहुत सुंदर मनमोहक दोहे। सभी अच्छे लगे परंतु यह विशेष लगा -
    गलियन-गलियन घूमती, गंध गमक गुन गाय !
    प्रभु चरणों में वास है, क्यूँ न फिरूँ इतराय !
    सादर, सस्नेह दीदी।

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    1. हृदय से आपका धन्यवाद मीना जी ! दोहे आपको अच्छे लगे मेरा श्रम सार्थक हुआ ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  8. बहुत ही सुन्दर सृजन...।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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