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Sunday, September 6, 2020

चंद शिकवे

A Sad And Pensive Woman Sitting By The Ocean Deep In Thought Stock Photo,  Picture And Royalty Free Image. Image 19588355.

कभी रूदादे ग़म सुनने को बुलाया होता,
कभी तो दर्द ए दिल फुर्सत से सुनाया होता !

उजाड़े आशियाने अनगिनत परिंदों के,
कभी एक पेड़ मोहोब्बत से लगाया होता !

चुभोये दर्द के नश्तर तुम्हारी नफरत ने,
कभी दिल प्यार की दौलत से सजाया होता !

खिलाए भोज बड़े मंदिरों के पण्डों को,
कभी भूखों को किसी रोज़ खिलाया होता !

जलाये सैकड़ों दीपक किया घर को रौशन,
दिया एक दीन की कुटिया में जलाया होता !

उठाये बोझ फिरा करते हो अपने दिल का,
कभी तो बोझ किसी सर का उठाया होता !

किये थे वादे जो तुमने महज़ शगल के लिये,
कोई वादा तो कभी मन से निभाया होता !

सुना है बाँटते फिरते हो मोहोब्बत अपनी,
किसी मजलूम को सीने से लगाया होता !


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद


14 comments :

  1. वाह ! हर पंक्ति, हर शेर में संदेश है।

    सुना है बाँटते फिरते हो मोहोब्बत अपनी,
    किसी मजलूम को सीने से लगाया होता !

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    1. हार्दिक धन्यवाद मीना जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. बहुत सुन्दर सारग्रिभित ग़ज़ल-गीतिका।

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    1. उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार ( 7 सितंबर 2020) को 'ख़ुद आज़ाद होकर कर रहा सारे जहां में चहल-क़दमी' (चर्चा अंक 3817) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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    1. हार्दिक धन्यवाद रवीन्द्र जी ! आपका बहुत बहुत आभार ! सादर वन्दे !

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  4. किये थे वादे जो तुमने महज़ शगल के लिये,
    कोई वादा तो कभी मन से निभाया होता !

    वाह

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    1. हार्दिक आभार जफ़र जी ! तहे दिल से शुक्रिया आपका !

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  5. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  6. खिलाए भोज बड़े मंदिरों के पण्डों को,
    कभी भूखों को किसी रोज़ खिलाया होता !
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  7. हार्दिक धन्यवाद आपका महोदय ! बहुत बहुत आभार !

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  8. वाह!... 'सुना है बाँटते फिरते हो मोहोब्बत अपनी,
    किसी मजलूम को सीने से लगाया होता!'- बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!

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    1. हार्दिक धन्यवाद हृदयेश जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर !

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