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Thursday, October 15, 2020

एकाकी मोरनी

 


बाट निहारूँ
कब तक अपना
जीवन वारूँ

आ जाओ प्रिय
तुम पर अपना
सर्वस हारूँ

सूरज डूबा
दूर क्षितिज तक
हुआ अंधेरा

घिरी घटाएं
रिमझिम बरसें
टूटे जियरा

कौन मिला है
कह दो अब नव
जीवन साथी

हम भी तो थे
इस धरती पर
दीपक बाती

कहाँ बसाया
किस उपवन में
नया बसेरा

मुझे बुझा के
पल पल अपना
किया सवेरा


साधना वैद

20 comments :

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-10-2020) को "न मैं चुप हूँ न गाता हूँ" (चर्चा अंक-3856) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !

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    1. हार्दिक धन्यवाद उर्मिला जी ! स्वागत है आपका ! बहुत बहुत आभार !

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    1. हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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    1. हार्दिक धन्यवाद गगन जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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    1. हार्दिक धन्यवाद अमृता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  7. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 19 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

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    1. हार्दिक धन्यवाद आभा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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    1. हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद आपका विमल जी ! बहुत बहुत आभार !

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    1. हृदय से स्वागत है सधु चन्द्र जी ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !

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