अपने बचपन की
दीवाली की जब याद आती है तो बरबस ही मुख पर मुस्कान छा जाती है ! बहुत ही उमंग भरे
सुखदाई दिन होते थे वो ! रक्षा बंधन और जन्माष्टमी के समाप्त होते ही घर की रंगाई
पुताई का कार्यक्रम शुरू हो जाता था ! अधिकाँश कमरों में तो सफेदी ही की जाती थी लेकिन
घर के ड्राइंगरूम और प्रमुख कमरों में डिस्टेम्पर किया जाता था ! कई दिनों तक यह
कार्यक्रम चलता ! घर का सारा सामान बाहर निकल जाता ! रात को बारिश में कहीं भीग न
जाए तो उस पर त्रिपाल डाल कर ढक दिया जाता ! कमरों में कई दिनों तक रंग रोगन की
महक भरी रहती ! सारे सामान को झाड़ पोंछ कर, सहेज सँवार कर
सुव्यवस्थित तरीके से फिर से कमरों में जमा दिया जाता ! आने वाले उत्सव त्योहार को
ध्यान में रखते हुए पितृ पक्ष आरम्भ होने से पहले ही बाज़ार से मम्मी आवश्यक्ता के
अनुसार कपड़े खरीद कर ले आतीं ! और फिर दिन रात उनकी मशीन चलती ! उस ज़माने में
मर्दाने कपड़ों के अलावा सारे कपड़े घर पर ही सिले जाते थे ! परदे हों, सोफे कुर्सियों के कवर हों, कुशन कवर हों, तकियों के गिलाफ हों या हमारे सलवार सूट हों, फ्रॉक गरारे
हों या ब्लाउज इत्यादि हों ! हर कपड़ा घर में सिला जाता था और दशहरे दीवाली तक सबके
पास नए कपडे हों पहनने के लिए मम्मी इस बात का पूरा ध्यान रखती थीं इसलिए उनकी
मशीन अनवरत रूप से नए-नए डिज़ाइनदार कपड़ों के उत्पादन में व्यस्त रहती थी !
नवरात्रि के
साथ ही उत्सव का वातावरण बन जाता था ! मम्मी चिकनी मिट्टी और गोबर के लेप से दीवार के एक हिस्से को रोज़ लीपती थीं ताकि उस पर वे करवा चौथ लिख सकें ! किसी विशिष्ट तिथि से वे रोज़ गोबर मिट्टी से तैयार किये गए उस हिस्से पर पिसे चावलों के घोल से करवा चौथ की कथा के पारंपरिक पात्रों के चित्र भी थोड़े थोड़े उकेरती रहती थीं ! चारों तरफ खूबसूरत फूल
पत्ती वाला बॉर्डर भी बनाती थीं ! यह सिलसिला करवा चौथ तक चलता था ! हम लोग भी
उसमें उनका सहयोग करते थे ! नव रात्रि का आयोजन भी साथ में चलता रहता था ! नवमी के
दिन कन्या लाँगुरों को खिलाने का कार्यक्रम भी विधि विधान से संपन्न किया जाता था
! दशहरे के दिन अस्त्र शस्त्र और कलम दवात की पूजा होती थी ! घर के सारे पेन,
होल्डर्स, कलम, दवात आदि धोकर
साफ़ करके पूजा में रखे जाते थे ! सारे अस्त्र शस्त्रों को भी चमकाया जाता था ! शाम
के समय हम सब लोग रावण दहन के समारोह को देखने के लिए बाबूजी के साथ दशहरा मैदान भी जाते
थे ! लौटते समय शमी वृक्ष के पत्तों को तोड़ कर लाना नहीं भूलते थे ! दशहरे की
शुभकामना स्वरुप इन्ही पत्तों को एक दूसरे को देने की प्रथा थी जो लंकादहन के बाद
लुटे गए सोने का प्रतीक माने जाते थे ! मध्यप्रदेश में दशहरे के अवसर पर सबके घर मिलने
जाने की प्रथा अधिक प्रचलित है !
करवा चौथ के
त्योहार के बाद दीपावली की तैयारियाँ शुरू हो जाती थीं ! बड़े-बड़े पटाखे जैसे अनार,
लड़ियाँ, बम और रोकेट व आतिशबाजी वाले पटाखे तो दीवाली के आस पास ही खरीदे जाते थे
लेकिन हम बच्चे लोग दिन में चलाने वाले पटाखे दीवाली के कई दिन पहले से ही खरीद कर
ले आते थे और हम बच्चों का धमाल दीवाली के कई दिन पहले से ही शुरू हो जाता था ! उन
दिनों गोल गोल बड़े कंचे के आकार का एक पटाखा आता था जिसमें कागज़ के अन्दर बारूद
जैसी कोई चीज़ भरी होती थी ! उसे भीत फोड़ कहते थे ! उसे पूरी ताकत से दीवार पर फेंक
कर मारते थे तो ज़ोर की आवाज़ के साथ वह फूट जाता था ! उसमें हमें बहुत मज़ा आता था !
इस पटाखे को हम दिन में ही चलाते थे ! रात में जो फूटते नहीं थे वो खो जाया करते
थे ! सुबह तक ओस में भीग कर वे गीले हो जाते थे और बेकार हो जाते थे इसलिए उन्हें
दिन में ही चलाते थे ! लाल हरी रंगीन माचिस और साँप का खेल भी दिन में ही होता था
! एक और पटाखा आता था जिसका नाम चिटपिटी होता था ! गत्ते के पीस पर लाल रंग के दाँत
जैसे इसमें बने होते थे जिसे रगड़ कर आग निकाली जाती थी ! थोड़े बड़े हुए तो मोनो रेल
आने लगीं ! बगीचे में सबसे दूर के पेड़ों से डोरी बाँध कर मोनो रेल को चलाते थे और
जब वह दूसरे छोर से पलट कर आती थी तो सब बेहद खुश होते थे ! बीच में कई बार डोरी भी जल कर टूट जाती थी ! उसे बार बार जोड़ लगा कर ठीक करने में भी बहुत वक्त लग जाता था ! लेकिन यह सब दीपावली के उत्सव का एक हिस्सा ही माना जाता था ! रात में तो फुलझड़ी,
अनार, चकरी, रॉकेट और लड़ियाँ
ही चलाते थे ! बम चलाने का विशेषाधिकार भैया के पास ही होता था ! हमें घबराहट भी
होती थी और मम्मी चलाने भी नहीं देती थीं ! दीवाली वाली की रात को अपने बाबूजी के
साथ शहर की रोशनी देखने जाने का क्रम भी कभी नहीं टूटता था ! मम्मी घर में बड़ी सी झाँकी
सजाती थीं ! पूरे विधि विधान से लक्ष्मी गणेश का पूजन होता था और बहुत सुन्दर
रंगोली सजाई जाती थी ! उस दिन घर में मौजूद सारे आभूषणों और सारे पुराने सिक्कों
को चमका कर पूजा में रखा जाता था ! ब्रासो से सिक्के चमकाने का काम हमें सौंपा
जाता था ! मम्मी तरह-तरह के पकवान बनाती थीं जिन्हें हम लोग बड़े ही शौक से खाते थे
! लक्ष्मी पूजन के बाद पटाखे चलाये जाते थे ! बाबूजी हमेशा हम लोगों के साथ ही रहते
थे और हम बच्चों की सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से सावधान और सतर्क रहते थे ! वे पानी
से भरी दो बाल्टी हमेशा पास में रखवा लेते थे ! आज भी उमंग और उत्साह से भरे वो
दिन बहुत याद आते हैं ! जैसा जोश, और उल्लास तब अनुभव होता
था अब नहीं होता !
कुछ दुर्घटनाओं
की दिल दहलाने वाली स्मृतियाँ भी है जो आज भी याद आ जाती हैं तो रोंगटे खड़े हो
जाते हैं ! यह खाचरौद की बात है ! हम बहुत छोटे थे तब ! यही कोई चार पाँच साल के
होंगे ! भैया हमसे तीन साल बड़े थे ! हम लोगों के यहाँ उन दिनों एक बड़ा ही खूबसूरत
अल्सेशियन डॉग था उसका नाम टाइगर था ! हम बच्चे सुबह के समय आस पड़ोस के बच्चों के साथ चिटपिटी चला रहे थे !
टाइगर हमारे साथ ही हमारे खेल को बड़े ध्यान से देख रहा था ! चिटपिटी जैसे ही चलती
हम सब बच्चे खूब खुश होते और ताली बजा कर कूदने लगते ! टाइगर भी बहुत उत्तेजित हो
जाता ! उसे लगा यह चिटपिटी ही बड़ी ख़ास चीज़ है ! मौक़ा लगते ही वह पास में रखी चिटपिटी
के कई पत्ते मुँह में दबा कर भाग गया और उसने सबको कुतर कर खराब कर दिया ! जब तक
हम सब उससे पत्ते छुड़ा पाते उसके पेट में बहुत सा बारूद चला गया और उसकी तबीयत
बहुत खराब हो गयी ! डॉक्टर्स ने बहुत कोशिश की उसे बचाने की लेकिन उसके प्राणों की
रक्षा वे नहीं कर सके ! हमारा प्यारा टाइगर, हमारे घर की शान, हमारा सबसे प्यारा दोस्त हमें छोड़ कर भगवान् के पास चला
गया ! दीवाली के साथ टाइगर की याद एक टीस की तरह ज़िंदगी भर हमारे साथ चलती रही !
इसी तरह एक बार
खरगोन में हमारे सामने ही पटाखों की सात दुकानों में आग लग गयी थी ! उन दिनों हम पाँचवी
कक्षा में पढ़ते थे ! दिन में आड़े तिरछे हर दिशा में रॉकेट अनार बम आदि जिस तरह से
घंटों चलते रहे और जैसी अफरा तफरी उस दिन मची थी उसकी दहशत सालों मन पर छाई रही ! गनीमत
यही रही कि आग अस्थाई ठेलों पर लगी हुई दुकानों में लगी थी ! जगह खुली हुई थी ! चिंगारी
लगते ही सब बहुत दूर हट गए तो भीषण दुर्घटना होने से बच गयी ! केवल पटाखे ही राख
हुए किसीको शारीरिक क्षति नहीं हुई !
एक बार मैं
अपनी सहेली के यहाँ दीवाली पर पटाखे चला रही थी ! अनार को हाथ से जला कर नीचे रख
रही थी सारे अनार बड़े मज़े से चल रहे थे ! मुझे दीवाली के पटाखों में सबसे अच्छे
अनार ही लगते हैं ! सारा घर रोशनी में नहा जाता है और उत्सव का पूरा आनंद भी मिल
जाता है ! अनार चलाने में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था ! सहेली और उसके छोटे भाई बहन भी
खूब आनंद ले रहे थे ! हम सबके बीच बड़े बहादुर समझे जा रहे थे तो और बेपरवाह होकर
रिस्क उठाने से भी पीछे नहीं हट रहे थे ! एक अनार का फ्यूज़ वायर शायद कुछ छोटा था
! उसे दीये से सुलगा कर हम जैसे ही ज़मीन पर रखने लगे वह हमारे हाथ में ही फट गया !
बहुत जोर से हाथ जल गया ! सीधा हाथ था तो कई दिनों तक कोई भी काम करने में, खाना खाने में, नहाने धोने में, लिखने पढ़ने में बहुत तकलीफ हुई ! तब से एक सबक सीखा और फिर
कभी भी अनार को हाथ से सीधे नहीं जलाया ! जब भी जलाया फुलझड़ी से ही जलाया ! कई
दिनों में चोट ठीक हुई ! उस बार की चोट तो ठीक हो गयी लेकिन मन पर बड़ी गहरी लकीर
छोड़ गयी !
जीवन में खट्टी
मीठे हर तरह के अनुभव होते हैं ! इन्हीं में उनका आनंद भी है और सार्थकता भी ! जो
सबसे मधुर है, सबसे सुन्दर है, सबसे अच्छा है वह इसीलिये सर्वोत्तम है क्योंकि उसकी तुलना
में कुछ ऐसा भी है जो उससे कम अच्छा है, कम सुन्दर है और कम मधुर है या कहिये कड़वा
है ! जो बुरा न होता हमें अच्छे का महत्त्व पता ही कैसे चलता ! इसलिए मन में संचित
इन सभी स्मृतियों को हमारा शत शत नमन !
साधना वैद
सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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