सुबह सुबह जब घरेलू काम वाली बाइयों के साथ उनकी छोटी-छोटी लडकियों को सर्दी से बचने के लिये बगल में हाथ दबाये अपनी माँओं के साथ काम पर जाता हुआ देखती हूँ तो मन में दर्द की लकीर सी खिंच जाती है ! जिन छोटे-छोटे हाथों में कॉपी किताबें होनी चाहिए वे ठिठुरन भरी सर्दी में बर्तन घिसने के लिये विवश हैं ! लगभग पन्द्रह बीस वर्ष पहले मेरे यहाँ एक महरी काम करती थी मुन्नी ! उसके साथ उसकी बेटी अनीता भी आती थी उसका हाथ बँटाने ! जब भी मौक़ा मिलता वह कभी बच्चों की कहानी की किताब या कोई पत्रिका उठा लेती और उसके पन्ने पलटने लगती ! मुझे लगा वह रंगीन तस्वीरें देखने के लिये मैग्जीन उठा लेती है ! पर एक दिन गौर से देखा तो वह कुछ बुदबुदा रही थी ! मैंने ऐसे ही कौतुहलवश उससे पूछ लिया, “ तुम्हें पढ़ना आता है ? “
और उसका प्रत्युत्तर आशातीत था, “ हाँ, थोड़ा-थोड़ा आता है ! “
मेरे कहने पर कुछ गलत-सलत कुछ सही उसने मुझे थोड़ा सा पढ़ कर दिखाया ! मेरी सोच को दिशा देने के लिये वह एक टर्निंग पॉइंट था ! मैंने उसकी माँ से पूछा इसे पढ़ाती क्यों नहीं हो तो उसकी अंतहीन दुःख भरी कहानी शुरू हो गयी ! पति शराब पी पी कर इतना बीमार है कि उसके दवा इलाज में ही सारे रुपये खर्च हो जाते हैं ! अनीता के अलावा तीन बच्चे और भी हैं ! बस एक बेटे का दाखिला कराया है स्कूल में ! अनीता को साथ ले आती है मदद के लिये ! दूसरी लड़की घर और छोटे बच्चे को सम्हालती है ! सुन कर मुझे दुःख हुआ !
मैंने अनीता से पूछा, “क्या तुम पढ़ना चाहती हो ?” और उस वक्त उसकी आँखों में जो चमक मैंने देखी थी वह अभी तक मेरे ज़ेहन में बिलकुल सुरक्षित है ! मैंने पहले घर पर रोज उसे दिन में एक दो घण्टे पढ़ा कर तैयारी करवाई और नया सत्र आरम्भ होते ही पास के एक अच्छे स्कूल में वहाँ की प्रधानाध्यापिका से मिल कर उसका दाखिला तीसरी कक्षा में करा दिया ! उसकी फीस, स्कूल यूनीफ़ॉर्म, कॉपी किताबें और अन्य सभी चीज़ों का दायित्व मैंने स्वयम् सम्हाल लिया ! रोज घर पर बुला कर उसे पढ़ाना, होम वर्क कराना, उसके हैण्ड क्राफ्ट के काम में उसकी मदद करना यह सब मेरी दिनचर्या के अनिवार्य अंग हो चुके थे ! बीच-बीच में स्कूल जाकर मैं उसकी टीचर्स से मिल कर उसकी रिपोर्ट भी लेती रहती थी ! बहुत बढ़िया तो नहीं लेकिन वह क्लास में ठीक-ठीक चल रही थी ! इसी तरह दो साल गुजर गये और अनीता पाँचवी कक्षा में आ गयी ! मेरे मन में बड़ा संतोष था कि मैं एक पुण्य का काम कर रही हूँ ! और सोचा था कि इसे कम से कम ग्रेजुएट तो ज़रूर बना दूँगी ! सब कुछ मन के मुताबिक़ चल रहा था कि एक दिन मुन्नी खूब सजी-धजी एक निमंत्रण पत्रिका हाथ में लिये चौड़ी सी मुस्कान बिखेरती उपस्थित हो गयी, “ अनीता की सगाई कर दी है बहूजी आज ! अगले महीने में ब्याह की तारीख निकली है ! आपको ज़रूर आना है ! “
क्या कहूँ समझ नहीं पा रही थी ! इस बालिका वधु के ब्याह की खबर पर खुशी व्यक्त कर उसे बधाई दूँ या एक संभावना से भरपूर आकार लेते व्यक्तित्व के मटियामेट हो जाने के लिये दुःख मनाऊँ ! और फिर अगले महीने अनीता की शादी हो गयी और वह पढ़ाई अधूरी छोड़ अपनी ससुराल चली गयी ! कुछ दिन के बाद मुन्नी भी मेरा काम छोड़ गयी ! उसके बाद आठ दस साल गुजर गये होंगे ! मेरी उससे मुलाक़ात नहीं हुई ! एक दिन अचानक वह रास्ते में मिल गयी ! मैंने अनीता के हाल चाल पूछे तो बोली राजी खुशी है अपने घर में ! मैंने पूछा, “कुछ पढ़ाई लिखाई आगे की उसने या सब छोड़ दिया !”
“ अरे कहाँ बहूजी ! चार-चार बच्चे हैं उसके पास ! उन्हें पढ़ायेगी कि खुद पढ़ेगी ! “
मन कसैला हो आया था ! मेरे सुंदर सपने का पटाक्षेप हो चुका था !
आज की मेरी यह रचना ऐसी ही बच्चियों के मन की दमित इच्छओं की प्रतिध्वनि है !
अनुनय
माँ तू देख मुझे भी अब तो लिखना पढ़ना आता है,
भैया जैसा मुझको क ख ग घ लिखना आता है !
नहीं भेजती मुझको तू स्कूल मगर ऐसा क्यों है ?
सारे घर का काम सदा मुझको करना पड़ता क्यों है ?
सब कहते मैं भैया से भी ज्यादह बुद्धी वाली हूँ,
फिर क्यों तुझको माँ लगती मैं निपट अकल से खाली हूँ !
मुझको भी अच्छी लगती है पुस्तक में लिक्खी हर बात,
भैया पढ़ता जोर-जोर से, हो जाती हैं मुझको याद !
मैं भी खूब इनाम लाऊँगी भेजेगी जो तू स्कूल,
अव्वल आऊँगी कक्षा में, नहीं करूँगी कोई भूल !
वापिस घर आकर फिर माँ मैं तेरा हाथ बटाऊँगी,
पर पढ़ने दे मुझको माँ मैं बन कर ‘कुछ’ दिखलाऊँगी !
साधना वैद
आपकी कविता में मेरे मन के भाव है | पर इस वर्ग के लिए हम खाली अफ़सोस मना कर नहीं बैठ सकते जागरूक लोगो कों इस दिशा में कुछ तो करना ही होगा |दर असल यह एक वर्ग की जंग है जिसके लिए निरंतर लगे रहना जरूरी है |
ReplyDeleteसारे घटना क्रम को पढ़ कर यही लगता है कि इस वर्ग के लोगों में जीवन को देखने का एक अलग नजरिया है ...आपका साथ पा कर भी अनीता शिक्षा नहीं पा सकी ...यह उसके भाग्य की विडम्बना ही है ...कविता के भावों को सीधे सरल शब्दों में व्यक्त किया है ...अच्छी प्रस्तुति .
ReplyDeleteसारा वृतांत इस तरह से लिखा की आँखों के आगे सब घूम सा गया...संगीता जी की बात से सहमत हूँ की इस वर्ग के लोगों का नजरिया अलग होता है...और आप हम जैसे लोग इनके पढाने का जिम्मा लेने के बाद भी इनके बाल विवाह जैसी सोचों को नहीं बदल सकते. दुख होता है ऐसी सोच पर.
ReplyDeleteकविता को बहुत निर्मल भावों से संजोया है.
आज भी काम वाली बाइयों के घर की यही कहानी है |
ReplyDeleteबहुत कम लोग जाग्रत हें |कहीं कहीं तो लड़कों को भी नहीं पढाना चाहते |बहुत अच्छा लिखा है |बधाई
आशा
प्रभावी पोस्ट ..... यही हकीकत है....
ReplyDeleteाभी हालात सुधरे नही हैं आज इधर उधर हर जगह यही कुछ देखने को मिलता है। बहुत भावमय कविता और प्रसंग है बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही दुख होता है यह सब देख....तब और भी जब लड़की में पढने की ललक थी और आपने उसे सहारा भी दिया...पता नहीं कितने युग लगेंगे सुधार आने में..इतनी कच्ची सी उम्र में माँ बन जाती हैं....और फिर सारी ज़िन्दगी उनकी देखभाल में ही निकल जाती है.
ReplyDeleteनिम्न वर्ग की यही कहानी है....मुंबई में तो बेटो को ट्यूशन दिलाकर महंगे स्कूल में पढ़ाया जाता है...और वे बार-बार फेल होते हैं...जबकि लडकियाँ वही..बर्तन घिसती हैं...
बड़ी ही मार्मिक कविता है...मन द्रवित हो आया
bahut achchi lagi aapki rachna.
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