Followers

Wednesday, November 10, 2010

अबूझे सवाल

तुमने ही पुकारा था तब सौ बार हमें,
जब प्यार नहीं था तो जताया क्यों था !

रहने को ठिकाने थे बहुत मेरे लिये,
आँखों में बसा कर के गिराया क्यों था !

हमसे तो वफ़ा की बहुत तकरीरें कीं,
जो खुद नहीं सीखे वो सिखाया क्यों था !

मुझको तो ज़मीं से भी बहुत निस्बत थी,
फिर ऊँचे फलक पर यूँ बिठाया क्यों था !

जब वक्त की आँधी से बचाना ही न था,
बुझने के लिये दीप जलाया क्यों था !

जो इश्क इबादत सा कभी लगता था,
उस इश्क की कसमों को भुलाया क्यों था !

जिस नाम की कीमत बहुत थी नज़रों में,
दिल पर उसे लिख कर के मिटाया क्यों था !

तुम थे ही नहीं प्यार के काबिल फिर भी,
हर रस्म को इस दिल ने निभाया क्यों था !

साधना वैद

9 comments :

  1. बड़ी कसक भरी है हर क्यों में ....व्यथित ह्रदय की वेदना को बहुत सजीवता से प्रस्तुत किया आपने !!

    ReplyDelete
  2. रहने को ठिकाने थे बहुत मेरे लिये,
    आँखों में बसा कर के गिराया क्यों था !

    ओहो..क्या बात है...

    जिस नाम की कीमत बहुत थी नज़रों में,
    दिल पर उसे लिख कर के मिटाया क्यों था !

    आज तो अंदाज़-ए-बयाँ कुछ और ही है..एकदम अलग रंग में है..यह रचना.

    ReplyDelete
  3. लाजवाब रचना …………भावों को सम्पूर्णता प्रदान की है।

    ReplyDelete
  4. जो खुद नहीं सीखे वो सिखाया क्यों था
    बुझने के लिए दीप जलाया क्यों था

    तुम थे ही नहीं प्यार के काबिल फिर भी,
    हर रस्म को इस दिल ने निभाया क्यों था !

    बहुत बहुत बधाई साधना जी..........

    ReplyDelete
  5. हमसे तो वफ़ा की बहुत तकरीरें कीं,
    जो खुद नहीं सीखे वो सिखाया क्यों था !

    तुम थे ही नहीं प्यार के काबिल फिर भी,
    हर रस्म को इस दिल ने निभाया क्यों था !
    इन पँक्तिओं पर एक शेर कहूँगी----
    उसने निभाई ना वफा गर इश्क मे तो क्या हुया
    उससे जफा मै भी करूँ मेरी वफा फिर क्या हुयी
    बहुत अच्छी लगी आपकी रचना। बधाई।

    ReplyDelete
  6. अरे अरे अरे....ये क्या लिख दिया ? और बायीं द वे ये कब लिखी गयी ? क्या कॉलेज टाइम में ? वाह क्या रोमांटिक ...क्या शिकायतों की पोटली खोली आज..पहली बार पढ़ा आपकी कलम का ये कलाम.

    सुंदर बहुत सुंदर लगी आपकी ये रचना.

    ReplyDelete
  7. जिस नाम की कीमत बहुत थी नज़रों में,
    दिल पर उसे लिख कर के मिटाया क्यों था !

    बहुत सुन्दर गज़ल ..दिल के भावों को बहुत खूबी से शब्द दिए हैं ...

    ReplyDelete
  8. "हम से वफा की ------फिर ऊंचे फलक पर यूँ बिठाया क्यूँ था "
    बहुत अच्छी पंक्तियाँ |सुंदर भाव |बहुत बहुत बधाई
    आशा

    ReplyDelete