Followers

Monday, November 8, 2010

कभी तो सोचिये

हमारे देश में एक वक्त ऐसा भी आया था जब सम्पूर्ण भारत भीषण खाद्य समस्या से जूझ रहा था ! खाद्यान्न आयात करने के लिये हमें अन्य संपन्न देशों की मुखापेक्षा करनी पड़ती थी किन्तु फिर भी गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले अनेक भारतवासियों को आधे पेट भूखे रह कर या कंद मूल खाकर अपनी जठराग्नि को शांत करना पड़ता था ! तब हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री थे ! मुझे याद है उन्होंने आह्वान किया था कि यदि सभी लोग सप्ताह में एक दिन एक समय का भोजन त्याग दें तो खाद्य समस्या के निवारण में बहुत मदद मिलेगी और कितने ही भूखे लोगों की क्षुधा शांत करने का उपाय संभव हो सकेगा ! उनकी एक पुकार पर अनेक भारतवासियों ने सोमवार की शाम को भोजन ना करने का संकल्प लिया था और उस दिन हमारे यहाँ भी घर के सभी सदस्य व्रत रखते थे ! इस व्रत को जितनी भावना और ईमानदारी के साथ हम लोग रखते थे शायद किसी भी धार्मिक व्रत को इस तरह हमने कभी नहीं रखा होगा ! हमें याद है कि कैसे थाली में जूठा खाना छोडने के लिये डाँट पडती थी और खाना परोसने से पहले कई बार हिदायत दी जाती थी कि उतना ही खाना लेना जितना खा सको ! मुझे यह भी याद है कि एक सर्वे के निष्कर्ष में यह तथ्य भी सामने आया था कि संपन्न लोग यदि ओवर ईटिंग ना करें और खाना बर्बाद ना करें तो खाद्य समस्या से आसानी से निपटा जा सकता है ! उस समय की यादें आज भी मन मस्तिष्क में ताज़ा हैं ! कैसे हम सब सहेलियां मिल कर इस गंभीर समस्या पर तर्क वितर्क करते थे और स्कूल में लंच टाइम में जो लडकी खाना फेंकते हुए या जूठा छोडते हुए दिखाई दे जाती थी कैसे बाकी सब लडकियां मिल कर जी भर कर उसकी भर्त्सना कर उस पर टूट पड़ते थे ! उन दिनों के संस्कार आज भी मुझमें ज्यों के त्यों जीवित हैं और आज भी मुझे थाली में जूठन छोडना या खाना बर्बाद करना बिलकुल अच्छा नहीं लगता !
देश में खाद्य समस्या का राग अब सुनाई नहीं देता ! लेकिन हालात में सुधार शायद अभी भी बहुत अधिक नहीं हुआ है ! अब खाद्यान्न के मामले में देश आत्मनिर्भर तो हो गया है लेकिन यह अनाज गरीबों के मुख तक अब भी नहीं पहुँच पाता ! वह या तो मुनाफाखोर व्यापारियों को औने पौने दामों में उपलब्ध करा दिया जाता है जिसकी चौगुनी कीमत बढ़ा कर वे उसे बाज़ार में बेचते हैं या फिर वह सरकारी गोदामों नें सड़ कर अंतत: समुद्र के हवाले कर दिया जाता है ! किसी भी दशा में वह गरीब आदमी की पहुँच से दूर होता है ! ऐसे हालात में क्या हमें अपनी आदतों और तौर तरीकों पर एक बार चिंतन मनन नहीं करना चाहिए ?
आजकल किसी भी आयोजन में दावतों का स्वरुप बिलकुल बदल गया है ! इतने असंख्य व्यंजन मेनू में होते हैं कि सभी को तो चखना भी संभव नहीं होता ! पहले तो स्टार्टर्स के नाम पर अनेक प्रकार के चाट के आइटम होते हैं ! चाट के शौक़ीन लोग इन आइटम्स पर टूट पड़ते हैं और स्वाद स्वाद में ज़रूरत से कहीं ज्यादह अपनी प्लेटों में भर लेते हैं और जब खाया नहीं जाता तो भरी भराई प्लेटें नीचे सरका देते हैं ! इसके बाद बारी आती है मेन कोर्स की ! पेट तो तरह तरह की चाट से ही भर जाता है लेकिन अगर मेन कोर्स का खाना नहीं खाया तब तो समझिए जीवन ही निष्फल हो गया ! और फिर वही होता है जो नहीं होना चाहिए ! अगर आप ध्यान देंगे तो पायेंगे कि खाना खाकर अपनी प्लेट को जब लोग बास्केट में रखते हैं तो उन प्लेटों में इतना खाना भरा पड़ा होता है कि किसी एक व्यक्ति का पेट आसानी से भर जाए ! ऐसी कितनी प्लेटों का जूठा खाना कूड़े के ढेर पर फेंक दिया जाता है और कई पेटों की भूख के निवारण का साधन इस तरह बर्बाद कर दिया जाता है ! क्या यह विचारणीय नहीं है कि अपनी प्लेट में सिर्फ उतना ही भोजन परसें कि जूठा बचे ही नहीं ! और उससे भी बड़ी ज़रूरत इस बात पर ध्यान देने की भी है कि क्या दावतों का स्वरुप और मेनू छोटा नहीं किया जा सकता कि खाने की इस तरह से बर्बादी ना हो ? मैंने ऐसे आयोजन स्थलों के आस पास कई गरीब और भूखे बच्चों और वयस्कों को भोजन की आशा में घूमते हुए देखा है जिन्हें निर्ममता से वहाँ से दूर खदेड़ दिया जाता है लेकिन क्या हम इतने असंवेदनशील हो गए हैं कि हमें किसीकी भूख प्यास, दुःख दर्द अब बिलकुल नहीं छूते ? ना ही अपना गैर जिम्मेदाराना व्यवहार हमें अखरता है जब हम भोजन को बर्बाद कर फेंकने में ज़रा भी नहीं हिचकते और ना ही किसी गरीब को खाना देने की बजाय उसे अपमानित कर दुरदुरा कर भगाने में कोई शर्म महसूस होती है !
भगवान का आप धन्यवाद करिये कि उसने आपको इतना सक्षम और संपन्न बनाया है कि आप इतनी आलीशान दावतें खिलाने और खाने की हैसियत रखते हैं लेकिन अपनी विभिन्न प्रकार के व्यजनों से भरी जूठी प्लेट फेंकते वक्त इतना ज़रूर याद रखियेगा कि कहीं कुछ ऐसे इंसान भी हैं जिन्हें इस भोजन की सख्त ज़रूरत है और अगर आपने इसे इस तरह से बर्बाद न किया होता तो शायद आज किसी भूखे का पेट भर जाता !

साधना वैद

7 comments :

  1. मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
    http://samajik2010.blogspot.com/2010/11/blog-post.html

    ReplyDelete
  2. बंहत ही सार्थक और सामयिक प्रश्न उठाया है आपने | वाकई ये हमारी खाने की आदते ही हैजिनके कारण हम झूठन छोडना अपनी शान समझते है| रही वृत उपवास की बात तो अब ये सब तो भोजन के स्वाद में^ परिवर्तनका जरिया बन गया है |वृत का पारायण तो शाही अंदाज में^ किया जाता है |
    अच्छा आलेख ,बधाई

    ReplyDelete
  3. साधना जी बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है और सही सन्देश भी दिया है। बहुत बहुत धन्यवाद।

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छा सन्देश देता लेख ...

    ReplyDelete
  5. बहुत सार्थक लेख पढ़ने को दिया आपने. लगता है कहीं किसी शादी पार्टी को अटेंड कर के आ रही हैं.
    मैं भी आपकी सी सोच रखती हूँ. और ऐसी दावतों में बिलकुल भी वेस्ट नहीं करती. और घर में बच्चों को भी यही हिदायतें हैं.

    लाल बहादुर शास्त्री जी का सन्देश जान कर जानकारी बढ़ी...मैं इस बात से अनभिग्य थी.

    ReplyDelete
  6. बहुत ही सार्थक आलेख है....लाल-बहादुर शास्त्री जी के आह्वान पर सुना था पूरे देश के लोगों ने हफ्ते में एक दिन का व्रत रखना शुरू कर दिया था....और उनमे से कुछ परिवार आज भी यह निभाते हैं...स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह बहुत लाभदायक है.

    प्लेट में खाना ना छोड़ने की आदत अगर बचपन में ही डाल दी जाए तो सुधार संभव है. यह तो सच है...समारोहों में जितना खाना बर्बाद होता है,उतने में सैकड़ों का पेट भर जाए.
    सुना था, मदर टेरेसा जब भी सफ़र करतीं तो ट्रेन में लोगों से उनके बचे हुए खाने मांग लिया करती थीं और उसे भिखारियों में बाँट देती थीं.
    इस दिशा में जागरूकता अति-आवश्यक है.

    ReplyDelete
  7. बहुत सही लिखा है |बहुत अच्छे तरीके से खाद्यान्न के बर्बाद किये जाने से होने वाली समस्याओं और उनके लिए उपयुक्त सुझाव बहुत सामिक हें |अच्छे लेख के लिए बहुत बहुत बधाई |
    आशा

    ReplyDelete