चंद शिकवे हैं हमें आपकी इनायत से ,
कभी तो हाले दिल फुर्सत से सुनाया होता !
उजाड़े आशियाने अनगिनत परिंदों के ,
कोई एक पेड़ मौहब्बत से लगाया होता !
चुभोये दर्द के नश्तर तुम्हारी नफरत ने ,
कभी दिल प्यार की दौलत से सजाया होता !
खिलाए भोज बड़े मंदिरों के पण्डों को ,
कभी भूखों को किसी रोज खिलाया होता !
जलाए सैकड़ों दीपक किया रौशन घर को ,
दिया एक दीन की कुटिया में जलाया होता !
उठाये बोझ फिरा करते हो अपने दिल का ,
कभी तो बोझ किसी सर का उठाया होता !
किये थे वादे जो तुमने महज़ सुनाने को ,
कोई वादा तो कभी मन से निभाया होता !
सुना है बाँटते फिरते हो मौहब्बत अपनी ,
किसी मजलूम को सीने से लगाया होता !
साधना वैद
वाह! क्या बात है, बहुत ही सुन्दर रचना, बेहतरीन!
ReplyDelete"दिया एक दीन की कुटिया में जलाया होता "
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव लिए पोस्ट |बधाई
आशा
किसी मजलूम को सीने से लगाया होता !
ReplyDeleteवाह सुधा जी वाह
bahut sunder bhavo ko liye hai aapkee rachana.... kash aisa hota..........
ReplyDeleteखिलाए भोज बड़े मंदिरों के पण्डों को ,
ReplyDeleteकभी भूखों को किसी रोज खिलाया होता !
जलाए सैकड़ों दीपक किया रौशन घर को ,
दिया एक दीन की कुटिया में जलाया होता !
बहुत खूबसूरत भाव हैं ....आज कल गज़ल विधा पर जोर है :)..अच्छी प्रस्तुति
वाह जी क्या बात है आज कल तो कलम के मिजाज बदले हुए हैं. अगर ऐसी अच्छी सोच सब की हो जाये तो इसे कलियुग कौन कहेगा ?
ReplyDeleteकविता जो गज़ल के रूप में लिखने की कोशिश की है काबिले ता
रीफ है.
वाह क्या बात है किसी मजलूम कों सीने से लगाया तो होता |इरसाद, दाद देने कों जी चाहता है मन खुश हुआ आपकी शिकायत बिलकुल जायज है |
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