Followers

Thursday, November 18, 2010

चंद शिकवे

चंद शिकवे हैं हमें आपकी इनायत से ,
कभी तो हाले दिल फुर्सत से सुनाया होता !

उजाड़े आशियाने अनगिनत परिंदों के ,
कोई एक पेड़ मौहब्बत से लगाया होता !

चुभोये दर्द के नश्तर तुम्हारी नफरत ने ,
कभी दिल प्यार की दौलत से सजाया होता !

खिलाए भोज बड़े मंदिरों के पण्डों को ,
कभी भूखों को किसी रोज खिलाया होता !

जलाए सैकड़ों दीपक किया रौशन घर को ,
दिया एक दीन की कुटिया में जलाया होता !

उठाये बोझ फिरा करते हो अपने दिल का ,
कभी तो बोझ किसी सर का उठाया होता !

किये थे वादे जो तुमने महज़ सुनाने को ,
कोई वादा तो कभी मन से निभाया होता !

सुना है बाँटते फिरते हो मौहब्बत अपनी ,
किसी मजलूम को सीने से लगाया होता !

साधना वैद

7 comments :

  1. वाह! क्या बात है, बहुत ही सुन्दर रचना, बेहतरीन!

    ReplyDelete
  2. "दिया एक दीन की कुटिया में जलाया होता "
    बहुत सुंदर भाव लिए पोस्ट |बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  3. किसी मजलूम को सीने से लगाया होता !

    वाह सुधा जी वाह

    ReplyDelete
  4. bahut sunder bhavo ko liye hai aapkee rachana.... kash aisa hota..........

    ReplyDelete
  5. खिलाए भोज बड़े मंदिरों के पण्डों को ,
    कभी भूखों को किसी रोज खिलाया होता !

    जलाए सैकड़ों दीपक किया रौशन घर को ,
    दिया एक दीन की कुटिया में जलाया होता !

    बहुत खूबसूरत भाव हैं ....आज कल गज़ल विधा पर जोर है :)..अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  6. वाह जी क्या बात है आज कल तो कलम के मिजाज बदले हुए हैं. अगर ऐसी अच्छी सोच सब की हो जाये तो इसे कलियुग कौन कहेगा ?

    कविता जो गज़ल के रूप में लिखने की कोशिश की है काबिले ता
    रीफ है.

    ReplyDelete
  7. बीना शर्माNovember 18, 2010 at 9:29 PM

    वाह क्या बात है किसी मजलूम कों सीने से लगाया तो होता |इरसाद, दाद देने कों जी चाहता है मन खुश हुआ आपकी शिकायत बिलकुल जायज है |

    ReplyDelete