वाराणसी के धमाके ने एक बार फिर सबको दहला दिया है ! यह सब
हमारे यहाँ शायद इतनी आसानी से इसलिए घटित हो जाता है क्योंकि
अत्यंत धीमी न्याय प्रक्रिया की वजह से आतंकवादी बखौफ रहते हैं और
उन्हें स्थानीय लोगों की निर्बाध सहायता मिल जाती है जो क्षुद्र स्वार्थों की
पूर्ति के लिये अपने देश के साथ गद्दारी करने से ज़रा भी नहीं हिचकिचाते !
एक सवाल
कल फिर बनारस में एक
धमाका हुआ ,
एक माँ की गोद सूनी
एक पिता के मन के आँगन में
सन्नाटा हुआ !
एक नन्हीं सी जान ने
नफ़रत और आतंक के
घातक वार को
अपनी छाती पर झेला है !
उसकी बलि लेकर
शायद उन नर पिशाचों के
कलेजे में ठंडक पड़ गयी हो
जिन्होंने दरिंदगी भरा
यह घिनौना खेल खेला है !
जिन हाथों ने
इस बम को लगाया होगा
क्या उन्होंने भी कभी
अपनी मासूम बच्ची को
अपने सीने से लगा कर
उसके बालों को प्यार से
सहलाया होगा ?
जिन उँगलियों ने
इस बेजान रिमोट के
विध्वंसक ट्रिगर को
दबाया होगा
क्या उन्होंने भी कभी
दर्द से बिलखते
अपने बच्चे के
आँसुओं को पोंछ कर
रूमाल से
सुखाया होगा ?
कैसे कोई इतना
बेरहम हो सकता है ?
कैसे कोई सर्वशक्तिमान
उनके इस गुनाह को
उनके इस अक्षम्य पाप को
माफ कर सकता है ?
यहाँ तो उन्हें सज़ा मिलने में
शायद सालों लग जाएँ
लेकिन हे ईश्वर !
अगर तू कहीं है
तो कब उस अबोध नन्हीं बच्ची को
न्याय मिल पायेगा
जो इस जघन्य काण्ड की
अकारण शिकार हुई है !
साधना वैद
सच में कल शाम दिल दहल गया समाचार देखकर.. न जाने हम किस दुनिया की तरफ जा रहे हैं.. वो खुबसूरत और शांत माहौल जैसे गायब हो चला है...
ReplyDeleteक्या क्या बदल गया है ....
साधना जी ,
ReplyDeleteआपके संवेदनशील मन ने बहुत समसामयिक रचना गढ़ी है ...सच क्या मिलता है लोगों को ऐसा करने से ..कभी तो ईश्वार हिसाब बराबर कर ही देगा ...
मार्मिक प्रस्तुति
ऐसे सवाल ना जाने कितनी बार मन को मथ डालते हैं...आपने सारी सोच को शब्दों का जमा पहना दिया है...
ReplyDeleteअंदर तक आंदोलित कर गयी ये रचना
Mann ko chhu lene wali rachna.. i wish unme se koi is kavita ko padhe.. aur dekhe apna ghnauna chehra..
ReplyDeleteहम जब भी ऐसे धमाको की खबर सुनते हैं तो दिल करता है उस आतंकी का कॉलर पकड़ कर पूछे की क्या उनके मन नहीं पसीजते अपने नन्हे बच्चों की आँखों में आंसू देख जो वो इतने आंसुओं के सैलाब ला देते है और दिलों को खून से रंग देते हैं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर, सशक्त सवाल किया है आपने.
प्रभावशाली प्रस्तुति.
इन धमाको मे अगर इन कमीने नेताओ के बच्चे मरे तो जाने केसे दर्द होता हे...अब जनता को ही जागना होगा, इन वोट बेंक की राज नीति से देश को बचाना होगा.
ReplyDeleteधन्ज़वाद
विचारों को बहुत सुंदरता से सजोया और प्रस्तुत किया है |पोस्ट बहुत अच्छी लगी बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteआशा
क्या कहूँ मैं तो इन घटनाओं से बिलकुल संज्ञा शून्य हो जाती हूँ | आपकी रचना काश वे आतकी चेहरे पढ़ पाते |
ReplyDeleteशायद ही इन लोगों के जिस्म मे दिल की जगह पत्थर भरे हैं और वो कैसे माँ बाप होंगे जिनके ऐसे बच्चे हैं मुझे नही लगता ऐसे लोगों ने परिवार मे कभी किसी माँ बहन बेटी का दिल दर्द सहलाया हो। बहुत दुखदाई स्थिति है भगवान इन को सद्बुद्धी दे।
ReplyDeleteबहुत ही दर्दनाक स्थिति थी वहाँ पर । आपने अच्छी कविता और मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया हैँ । दिल दहला देने वाली घटना है ये ।
ReplyDeleteआदरणीया साधना दीदी
ReplyDeleteप्रणाम !
आपने बिल्कुल सच कहा-
अत्यंत धीमी न्याय प्रक्रिया की वजह से आतंकवादी बखौफ रहते हैं और
उन्हें स्थानीय लोगों की निर्बाध सहायता मिल जाती है जो क्षुद्र स्वार्थों की
पूर्ति के लिये अपने देश के साथ गद्दारी करने से ज़रा भी नहीं हिचकिचाते !
अब ज़रूरत आम नागरिक के सजग रहने की है ।
रचना बहुत विचारोत्तेजक है ।
कैसे कोई सर्वशक्तिमान
उनके इस गुनाह को
उनके इस अक्षम्य पाप को
माफ कर सकता है ?
आह ! बहुत मर्मस्पर्शी …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार