खामोशी की जुबां कभी कभी
कितनी मुखर हो उठती है
मैंने उस कोलाहल को सुना है !
खामोशी की मार कभी कभी
कितनी मारक होती है
मैंने उसके वारों को झेला है !
खामोशी की आँच कभी कभी
कितनी विकराल होती है
मैंने उस ज्वाला में
कई घरों को जलते देखा है !
खामोशी के आँसू कभी कभी
कितने वेगवान हो उठते हैं
मैंने उन आँसुओं की
प्रगल्भ बाढ़ में
ना जाने कितनी
सुन्दर जिंदगियों को
विवश, बेसहारा बहते देखा है !
खामोशी का अहसास कभी कभी
कितना घुटन भरा होता है
मैंने उस भयावह
अनुभूति को खुद पर झेला है !
खामोशी इस तरह खौफनाक
भी हो सकती है
इसका इल्म कहाँ था मुझे !
मुझे इससे डर लगता है
और मैं इस डर की क़ैद से
बाहर निकलना चाहती हूँ ,
कोई अब तो इस खामोशी को तोड़े !
साधना वैद
कितनी मुखर हो उठती है
मैंने उस कोलाहल को सुना है !
खामोशी की मार कभी कभी
कितनी मारक होती है
मैंने उसके वारों को झेला है !
खामोशी की आँच कभी कभी
कितनी विकराल होती है
मैंने उस ज्वाला में
कई घरों को जलते देखा है !
खामोशी के आँसू कभी कभी
कितने वेगवान हो उठते हैं
मैंने उन आँसुओं की
प्रगल्भ बाढ़ में
ना जाने कितनी
सुन्दर जिंदगियों को
विवश, बेसहारा बहते देखा है !
खामोशी का अहसास कभी कभी
कितना घुटन भरा होता है
मैंने उस भयावह
अनुभूति को खुद पर झेला है !
खामोशी इस तरह खौफनाक
भी हो सकती है
इसका इल्म कहाँ था मुझे !
मुझे इससे डर लगता है
और मैं इस डर की क़ैद से
बाहर निकलना चाहती हूँ ,
कोई अब तो इस खामोशी को तोड़े !
साधना वैद
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteतूफ़ान के पहले की ख़ामोशी को भावनाओ में ढाल दिया आपने... बहुत भयावह है इसे झेलना........ भावुक रचना
ReplyDeleteMy prayers are with all affected in tsunami in japan...God Bless them......
खामोशी में दिमाग में विचारों का आगमन बढ़ जाता है|सुंदर भावनात्मक रचना ख़ामोशी का ही सृजन है |
ReplyDeleteमुझे इससे डर लगता है
ReplyDeleteऔर मैं इस डर की क़ैद से
बाहर निकलना चाहती हूँ ,
कोई अब तो इस खामोशी को तोड़े !
दर्द से भरी खामोश रचना -
कितना कुछ बोलती हुई .
बहुत खूबसूरत .
सुंदर भावनात्मक रचना ख़ामोशी का ही सृजन है| धन्यवाद|
ReplyDeleteखामोशी की भी जुबां होती है..बहुत भावमयी रचना
ReplyDelete• इस कविता में आपकी वैचारिक त्वरा की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है।
ReplyDeleteखामोशी का बहुत सार्थक चित्रण किया है |
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट |सोचने को बाध्य करती है |
बधाई |इसी प्रकार लिखती रहना |
आशा
sadhna ji aapki ye rachna padh kar
ReplyDeleteAmrita Pritam ji ki likhi hui kuchh panktiyan yaad aa gayi jo me apke sath share karna chaahungi.
आज एक ऐसा सन्नाटा है जो न किसी को आने को आमंत्रित करता है और न किसी को जाने से रोकता है. आज मैं एक ऐसा मैदान हूँ जिस पर की सारी पगडंडियाँ तक मिट गयी हैं. एक ऐसी डाल जिसके सारे फूल झड चुके हों. सारे घोंसले उजड गए हैं. मन में असीम कुंठा और वेदना है . ऐसा कोई नहीं कि मेरे घावों को छू ले तो मैं आंसुओं में बिखर पडूँ.
खामोशी की जुबां कभी कभी
ReplyDeleteकितनी मुखर हो उठती है
मैंने उस कोलाहल को सुना है !
ख़ामोशी का शोर इंसान केवल स्वयं ही सुन पाता है और इससे घुटन के साथ तीव्र वेदना भी होती है ...
बहुत मर्मस्पर्शी रचना
खामोशी की मार कभी कभी
ReplyDeleteकितनी मारक होती है
इस गहन ख़ामोशी के बाद ही सैलाब आता है..
.बहुत ही हृदयग्राही रचना
खामोशी की आँच कभी कभी
ReplyDeleteकितनी विकराल होती है
sach men.aapne to khamoshi ka ek naya hi roop dikha diya....bahut sundar.
are koi hai????????? gala sookhne laga hai , koi hai kahin?
ReplyDeleteखामोशी इस तरह खौफनाक
ReplyDeleteभी हो सकती है
इसका इल्म कहाँ था मुझे !
मुझे इससे डर लगता है
सच कहा ख़ामोशी ज्यादा डराती है. भावनात्मक रचना.
बहुत सुंदर कभी कभी खामोशी से भी डर लगता हे, धन्यवाद
ReplyDeleteमैंने उन आँसुओं की
ReplyDeleteप्रगल्भ बाढ़ में
ना जाने कितनी
सुन्दर जिंदगियों को
विवश, बेसहारा बहते देखा है ॥
सुन्दर भावमयी प्रस्तुति ।
.
ख़ामोशी की मार बड़ी मारक होती है ...
ReplyDeleteइसे ज्यादा लम्बा नहीं खींचना चाहिए ...
मौन और ख़ामोशी , बहुत अंतर है इसकी विभिन्न अवस्थाओं में ...
ख़ामोशी को बेहतरीन शब्दों में समझा दिया !
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteखामोशी की ज़ुबां जब खुलती है तो सुनामी ले कर आती है। विचारों का प्रवाह रोके नही रुकता। सुन्दर रचना के लिये बधाई।
ReplyDeleteख़ामोशी में सम्प्रेषण क्षमता ज़बरदस्त होती है.
ReplyDeleteकुछ न कहो......
ReplyDeleteबस !!
खामोश रहो......!!!
आगे का काम खामोशी का......
bahut bhavpurn rachna
ReplyDelete.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
मैंने उन आँसुओं की
ReplyDeleteप्रगल्भ बाढ़ में...................
आदरणीया साधना जी आप की ये कविता पाठक से सीधा संवाद स्थापित करते हुए संदेश संप्रेषण करती हुई स्मृतियों में दर्ज हो जाती है| बधाई|
बहुत भावमयी रचना
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