Followers

Wednesday, March 30, 2011

विडम्बना












सोचा
था जब मिलेंगे वो रोयेंगे बहुत हम ,
दरिया में ग़म के उनको डुबोयेंगे फकत हम ,
जिनकी हथेली पोंछती अश्कों को हमारे ,
था उनके आँसुओं को ही दामन हमारा कम !


साधना वैद

14 comments :

  1. वाह गागर में सागर...
    कम पंक्तियों में गहरी बात कह दी...

    ReplyDelete
  2. हर इंसान की वही कहानी है -
    कुछ हंसती कुछ रोती सी जिंदगानी है -

    बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  3. पता नहीं आप की रचनाओं से आप की तस्वीर मेल नहीं खाती..
    मगर रचना बहुत अच्छी है..

    ReplyDelete
  4. lo ji aise kaise ho gaya ?????
    arey 5 meter ki sarri bhi kam pad gayi????

    ha.ha.ha.ha.

    damdar lines hain janaab bheeeeeeetar tak paith gayi.

    ReplyDelete
  5. वाह...कितनी मर्म स्पर्शी भावपूर्ण रचना है...
    नीरज

    ReplyDelete
  6. बहुत खूबसूरत ...सबको अपनीपीड़ा ही ज्यादा दिखाई देती है ...पर असलियत जब पता चलती है तो एहसास होता है .

    ReplyDelete
  7. बहुत खूब लिखा है |बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  8. बेहद गहरी पैठ बनाती आपकी काव्य शैली, संवेदनाओं को उकेरती रचना , कम शब्दों में, अभिवादन

    ReplyDelete
  9. चंद शब्दों में इतनी गहरी बात और बहुत भावपूर्ण. शुभकामनाएँ स्वीकारें.

    ReplyDelete
  10. चंद शब्दों में इतनी गहरी बात कह दी आपने.. भावपूर्ण रचना के लिए बहुत - बहुत आभार...

    ReplyDelete
  11. बहुत खूबसूरत
    बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

    ReplyDelete