तस्वीर एक बनाई थी मोहब्बत की कभी ,
हर इक नक्श को पलकों से तब सँवारा था !
वफ़ा के रंग भर दिए थे हर एक गुंचे में ,
हर इक पंखुड़ी पे नाम बस तुम्हारा था !
चाँद से नूर चाँदनी से माँग ली थी हँसी ,
ज़मीं पे दूर तलक खुशनुमां नज़ारा था !
सितारे टाँक लिये थे फलक के चूनर में ,
उन्हीं के नूर से रौशन जहाँ हमारा था !
ख़याल ओ ख्वाब लिये उड़ते थे हवाओं में ,
ज़मीं की सख्त फितरतों को कब निहारा था !
न जाने कैसे कहाँ टूट गये ख्वाब सभी ,
खुली जो आँख तो तनहा सफर हमारा था !
किसीने ने नोच लिये तिनके सब नशेमन के ,
ज़मीं पे बिखरा पड़ा आशियाँ हमारा था !
बहुत थी आरज़ू हमको तुम्हारी उल्फत की ,
बड़ी उम्मीद से हमने तुम्हें पुकारा था !
बहुत थे फासले और मुश्किलें भी थीं ज्यादह ,
खुद अपने आने पे भी बस कहाँ तुम्हारा था !
कहाँ थे फासले मीलों में या कि बस मन में , जो दुःख बस गया इस दिल में वो हमारा था !
साधना वैद
बहुत थी आरज़ू हमको तुम्हारी उल्फत की ,
ReplyDeleteबड़ी उम्मीद से हमने तुम्हें पुकारा था !
बहुत थे फासले और मुश्किलें भी थीं ज्यादह ,
खुद अपने आने पे भी बस कहाँ तुम्हारा था !
आज तो कुछ अलग ही मूड में हैं,आप
बहुत ही प्यारी लगी,ये रचना.
कहाँ थे फासले मीलों में या कि बस मन में ,
ReplyDeleteजो दुःख बस गया इस दिल में वो हमारा था !
न जाने ख्वाब क्यों टूट जाते हैं ...बहुत खूबसूरती से पिरोया है भावों को ...मन की वेदना की सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत थे फासले और मुश्किलें भी थीं ज्यादा
ReplyDeleteखुद अपने आने पे भी बस कहाँ तुम्हारा था !
........
प्रेम में कहा वश रह जा है आंटी..ये तो सर्वश्वा समर्पण की रह है..
रचना भा गयी मन को
न जाने कैसे कहाँ टूट गये ख्वाब सभी ,
ReplyDeleteखुली जो आँख तो तनहा सफर हमारा था !
एक एक लाईण गजब ढा रही हे बहुत खुब जी धन्यवाद
"चाँद से नूर चांदनी से मांग ली थी हंसी "
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी पोस्ट बधाई
आशा
सितारे टाँक लिये थे फलक के चूनर में ,.............
ReplyDeleteकिसीने ने नोच लिये तिनके सब नशेमन के .......
कहाँ थे फासले मीलों में या कि बस मन में ...............
भावनाओं का सुंदर शब्द चित्रण
बहुत थे फासले और मुश्किलें भी थीं ज्यादह ,
ReplyDeleteखुद अपने आने पे भी बस कहाँ तुम्हारा था !
कहाँ थे फासले मीलों में या कि बस मन में ,
जो दुःख बस गया इस दिल में वो हमारा था
बहुत गहन व्यथा ...शांत शांत ...सी हो कर बह रही है ..
एकाकी से भाव लिए ......
बहुत सुंदर कविता ...!!
बहुत थे फासले और मुश्किलें भी थीं ज्यादह ,
ReplyDeleteखुद अपने आने पे भी बस कहाँ तुम्हारा था !
कहाँ थे फासले मीलों में या कि बस मन में ,
जो दुःख बस गया इस दिल में वो हमारा था !
बहुत ही भावमय करते शब्द ।
साधना जी इस बेजोड़ रचना के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
अलग भावभूमि पर लिखी यह नज़्म मन को छू गई।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन लगी पूरी रचना.....
ReplyDeleteसुन्दर अहसास लिए अच्छी रचना।
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत थी आरज़ू हमको तुम्हारी उल्फत की
ReplyDeleteबड़ी उम्मीद से हमने तुम्हें पुकारा था ...
वाह ... बहुत खूबसूरत गीत है ... आपका अंदाज़ आज जुदा है ....
बहुत सुंदर .... सच्ची और अच्छी अभिव्यक्ति.... बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत सुंदर .... सच्ची और अच्छी अभिव्यक्ति.... बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत थी आरज़ू हमको तुम्हारी उल्फत की ,
ReplyDeleteबड़ी उम्मीद से हमने तुम्हें पुकारा था...
साधना जी , बहुत उम्दा रचना, भावुक करने वाली।
आज कल आपकी कवितायेँ मेरे ब्लॉग पर नहीं दिखाई दे रही हैं केवल शीर्षक आता है बस..
ReplyDeleteमैं आपकी "कठपुतली" भी नहीं पढ़ सकी,और "मैं तुम्हारी माँ हूँ" भी..
कृपया परेशानी का निवारण करें....!!