ओ
नन्हें से परिंदे
मुझे
तुमसे बहुत कुछ सीखना है !
सीखना
है कि
दिन
भर की अपनी थकान को
सहज
ही भुला तुम
अपने
छोटे-छोटे से पंखों में
कहाँ
से इतनी ऊर्जा भर लाते हो
कि
पलक झपकते ही
आकाश
की ऊँचाइयों में विचरण करते
घने
मेघों से गलबहियाँ डाल
चहचहा
कर तुम ढेर सारी
बातें
करने लगते हो !
सीखना
है कि
कहाँ
से तुमने इतना हौसला जुटाया है
कि
लगभग हर रोज़
कभी
इंसान तो कभी बन्दर
तुम्हारा
यत्न से सँजोया हुआ
घरौंदा
उजाड़ देते हैं
और
तुम निर्विरोध भाव से
तिनका-तिनका
जोड़
पुन:
नव नीड़ निर्माण के
असाध्य
कर्म में बिना कोई उफ़ किये
एक
बार फिर से जुट जाते हो !
सीखना
है कि
कहाँ
से तुम धीर गंभीर
योगी
तपस्वियों जैसी
असम्पृक्तता,
निर्वैयक्तिकता
और
दार्शनिकता की चादर
ओढ़ पाते हो कि अपने
जिन नन्हे-नन्हे चूजों की चोंच में
दिन
रात के अथक श्रम से
एकत्रित
किये दानों को चुगा कर
तुम
उन्हें जीवनदान देते हो,
दिन रात चील, कौए
गिद्ध, बाजों से उनकी
रक्षा करते हो ,
सक्षम
सशक्त होते ही
तुम्हें अकेला छोड़ वे
फुर्र
से उड़ जाते हैं
और उनके जाने के बाद भी
निर्विकार
भाव से
बिना स्वर भंग किये
हर
सुबह तल्लीन हो तुम
उतने
ही मधुर,
उतने ही जीवनदायी,
उतने ही प्रेरक गीत
गा लेते हो !
ओ
नन्हें से परिंदे अभी
मुझे
तुमसे बहुत कुछ सीखना है !
साधना
वैद !
सच बहुत कुछ सीखना है नन्हें परिंदे से ... हम इंसान मोह माया में ही फंसे रह जाते हैं ... बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteओ पंछी , ब्रह्मुहूर्त की पहचान - आसमां को छूने का हौसला - लम्बी उड़ान - बिना थकान - नीड़ का निर्माण .... तुम्हारे अन्दर कौन सा ईश्वर है ?
ReplyDeleteसचमुच नन्हें से परिंदे से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, मुश्किल से जूझकर भी फिर से नया संसार बसाना और खुशियों के गीत गाना.... सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर साधना जी..................
ReplyDeleteसच्ची काश परिंदों की तरह निस्वार्थ प्रेम और उन्मुक्तता होती हममे भी.....
सादर.
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
सृष्टि के हर कण से कुछ नाकुछ सीखने को मिलता है |नन्हे परिंदे जो सीखा बहुत सुन्दर ढंग से इस रचना में लिखा है |बहुत भावपूर्ण |
ReplyDeleteआशा
सच कहा अभी बहुत कुछ सीखना है ………प्रकृति के हर कण से सीखना है उसकी बनायी हर रचना से सीखना है मगर सीखने के साथ साथ अभी उस पर मनन और चिन्तन भी करना है तभी सीखना सार्थक होगा।
ReplyDeleteआदरणीय मौसीजी,सादर वन्दे,
ReplyDeleteसुन्दर तथा शानदार पोस्ट है ।बधाई।
ओ नन्हें से परिंदे अभी
ReplyDeleteमुझे तुमसे बहुत कुछ सीखना है ! wah....bahot sunder kavita.
प्रकृति के हर कण और हर वस्तू से हमेशा ही कुछ ना कुछ
ReplyDeleteसीखने को मिलता है....
सुन्दर भाव ,,,सुन्दर रचना...
prakriti k har srijan me insan ko seekh dene k liye bahut kuchh hai lekin insaan hai ki uska sad-upyog ki bajaye apne swarth aur moh maya me pada bas uska vinash aur apna swarth hi sadhta hai.
ReplyDeletekitna kuchh seekhne ko prerit kar rahi hai aapki ye rachna.
गहन विचारशील प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट है , बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा और प्रेरक रचना
ReplyDeleteबहुत प्रेरक और सुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDelete
ReplyDelete♥
ओ नन्हें से परिंदे अभी मुझे तुमसे बहुत कुछ सीखना है !
मुझे भी …
:)
आदरणीया मौसीजी साधना जी
प्रणाम !
सुंदर कविता के लिए साधुवाद !
लगभग हर रोज़ कभी इंसान तो कभी बन्दर
तुम्हारा यत्न से सँजोया हुआ घरौंदा उजाड़ देते हैं
और तुम निर्विरोध भाव से
तिनका-तिनका जोड़ पुन: नव नीड़ निर्माण के असाध्य कर्म में
बिना कोई उफ़ किये एक बार फिर से जुट जाते हो !
सच ! हमारा कोई नुकसान करदे तो हम ऐसे निर्विकार भाव से कभी नहीं रह पाते …
आज आपकी कई बीच में छूटी हुई पोस्ट्स पढ़ी है…
सभी के लिए बधाई और आभार !
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सच में कितना कुछ सीखना है इस नन्हें से परिंदे से...बहुत उम्दा रचना!!
ReplyDeleteओह ...बहुत सुंदर भाव और बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ...!!क्षमा करें साधना जी आने में विलम्ब हुआ ...!आपके भावों को नतमस्तक हूँ ...!!पंछियों से मन बहुत प्रभावित होता है निश्चय ही ....!!
ReplyDeleteओ नन्हें से परिंदे अभी
ReplyDeleteमुझे तुमसे बहुत कुछ सीखना है !..
आदरणीया साधना जी सच में बहुत कुछ सीखना है अंत तक सीखना है ...बहुत सुन्दर प्यारी रचना -भ्रमर ५
ओ नन्हें से परिंदे अभी
ReplyDeleteमुझे तुमसे बहुत कुछ सीखना है !..
आदरणीया साधना जी सच में बहुत कुछ सीखना है अंत तक सीखना है ...बहुत सुन्दर प्यारी रचना -भ्रमर ५