बहार
अपने पूरे यौवन पर है !
ह्रदय
के बीचों बीच
वर्षों
से गहरी जड़ें जमाये
मेरे
दुःख के अमलतास की
हर
डाल पर इन दिनों
दर्द
के ज़र्द पीले
गुच्छे
ही गुच्छे लटक रहे हैं !
हर
खिड़की के सहारे
मेरे
मन की विवर्ण
मनोदशा
को
परिभाषित
सा करतीं
श्वेत
फूलों से लदी
वगनवेलिया
की
मनोहारी
बेलें शीर्ष तक
चढ़
गयी हैं !
नयनों
से बहने को आतुर
मेरे
ह्रदय सरोवर के
रक्ताश्रु
गुलमोहर और
रक्त
चम्पा की
हर
शाख पर इन दिनों
विपुल
मात्रा में सजे हुए हैं !
नहीं
जानती
इनकी
खुशबू तुम तक
पहुँचती
भी है या नहीं
लेकिन
पल भर को
अपनी
आँखें बंद कर लोगे
तो
मेरे अंतर की पीड़ा के
सुन्दर
मनोरम संसार की
इस
अनुपम सुषमा को तुम
अवश्य
निरख पाओगे !
साधना
वैद !
kya baat hai poora upvan hai aapki rachna mein.......
ReplyDeleteऐसी रचनाएँ ही तुम्हें शोभा देती है |बेहद सुन्दर भावपूर्ण रचना |बहुत सुन्दर बिम्बों का उपयोग किया है |
ReplyDeleteआशा
बहुत सुंदर....................
ReplyDeleteये बहारों का मौसम कभी बीते ना....................
सादर
मन उपवन में बहार यौवन पर है ...पर दर्द की बहार ? पीड़ा का भी सुन्दर मनोरम दृश्य प्रस्तुत करना कोई सीखे तो आपसे .... बहुत भावप्रवण रचना
ReplyDeletehaa sahi kaha aapne amaltas ,boganbiliya aurgulmohar yaha odisa me bhi meri bhavnao ki sakshat abhivyakti kar raha hai aur dusare shabdo me kahu to man mausam ho aaya hai
ReplyDeleteअपनी आँखें बंद कर लोगे
ReplyDeleteतो मेरे अंतर की पीड़ा के
ये अंतर की पीड़ा भी जाने कैसे शब्दों में भटक कर बहार तक पहुंचने के लिए कितने जतन करती है ... गहन भाव
aankhe band ki to gulmohar ke foolon se apke antas ke dard surkh laal rang me behta hua dikha...is liye dar se aankhe khol di.
ReplyDeletebhaav pravan rachna.
पहली बार यहाँ पर आई हूँ...आकर अच्छा लगा...उपवन बना है मन...बहार भी...कुछ पीड़ा का आभास भी...बहुत सुंदर !!
ReplyDeleteसुन्दर रचना दर्द मे भी खूबसूरती, बहारें। बहुत खूब
ReplyDeleteजीवन के हर रूप को फूलों से तौल कर मन की बात कह दी. ये मन की व्यथा कहते फूल बहुत सुंदर हें और भावों में पिरोयों माला भी.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...!!
ReplyDeletewah......adbhud.....
ReplyDeleteपी़डा के इतने सुंदर रंग !!!
ReplyDeleteएक अलग ही रंग मे रंगी है यह दर्दीली कविता ।
यह मेरे मन का उपवन है जिसका हर फूल हर पत्ता मुझे प्यारा है फिर चाहे वह कितना ही दर्द से अभिसंचित क्यों न हो !
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